SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 563
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २११८ भगवती सूत्र - १२ उ. १० पृथ्वी आत्मा रूप है ? जाव असत्तमा । १३ प्रश्न-आया भंते ! सक्करप्पभा पुढवी ? १३ उत्तर - जहा रयणप्पभा पुढवी तहा सकरप्पभा वि, एवं १४ प्रश्न-आया भंते ! सोहम्मे कप्पे पुच्छछ । १४ उत्तर - गोयमा ! १ सोहम्मे कप्पे सिय आया, २ सय णो आया जाव णो आयाइ य । प्रश्न-से केणट्टेणं भंते ! जाव णो आयाइ य ? उत्तर - गोयमा ! १ अप्पणो आइट्ठे आया, २ परस्स आइडें णो आया, ३ तदुभयस्स आइट्ठे अवत्तव्यं आयाइ य णो आयाइ य; से तेणट्टेणं तं चेव जाव णो आयाइ य । एवं जाव अच्चुए कप्पे । १५ प्रश्न - आया भंते ! गेविज्जविमाणे, अण्णे गेविज्जविमाणे ? १५ उत्तर- एवं जहा रयणप्पभा तहेव, एवं अणुत्तरविमाणावि, एवं ईसिप भारा वि । रूप) ? Jain Education International कठिन शब्दार्थ -- माइट्ठे --आदिष्ट- उनके द्वारा कहे जाने पर । १२ प्रश्न - हे भगवन् ! रत्नप्रभा पृथ्वी आत्मरूप है या अन्य (असद् १२ उत्तर - हे गौतम ! रत्नप्रभा पृथ्वी कथंचित् आत्मरूप (सद्रूप ) है और कथंचित् नोआत्मरूप ( असद्रूप ) है । सदसद्रूप (उभयरूप ) होने से कथंचित् वक्तव्य है । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy