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________________ - भगवती सूत्र--ग.. उ. १० पथ्वी आत्मरूप है ? है और उनका अज्ञान भी अवश्य आत्मरूप है। इस प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक तक कहना चाहिये। बेइन्द्रिय, तेहन्द्रिय यावत् वैमानिक तक जीवों का कथन नरयिकों के समान जानना चाहिये । १० प्रश्न-हे भगवन् ! आत्मा दर्शनरूप है या दर्शन उससे भिन्न है ? १० उत्तर-हे गौतम ! आत्मा अवश्य दर्शनरूप है और दर्शन भी अवश्य आत्मरूप है। ११ प्रश्न-हे भगवन ! नरयिक जीवों की आत्मा दर्शनरूप है या नरयिक जीवों का दर्शन उससे भिन्न है ? । ११ उत्तर-हे गौतम ! नरयिक जीवों की आत्मा अवश्य दर्शनरूप है और उनका दर्शन भी अवश्य आत्मरूप है। इस प्रकार यावत् वैमानिकों तक चौवीस ही दण्डक कहना चाहिये । पृथ्वी आत्मरूप है ? . . ... १२ प्रश्न-आया भंते ! रयणप्पभापुढवी अण्णा एयणप्पभा पुढवी? __१२ उत्तर-गोयमा ! रयणप्पभा १ सिय आया २ सिय णो आया ३ सिय अवत्तव्वं आयाइ य णो आयाइ य। प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं बुचइ-‘रयणप्पभा पुढवी सिय आया, सिय णो आया, सिय अवत्तव्वं आयाइ य णो आयाइ य' ? - उत्तर-गोयमा ! १ अप्पणो आइडे आया, २ परस्स आइडे णो आया, ३ तदुभयस्स आइडे अवत्तव्वं रयणप्पभा पुढवी आयाइ य णो आयाइ य; से तेणटेणं तं चेव जाव णो आयाइ य । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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