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मगवती मूत्र-स. १२ उ. १. पृथ्वी आत्मरूप है ?
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प्रश्न-हे भगवन् ! क्या कारण है कि-रत्नप्रभा पृथ्वी कथंचित् सद्रूप, कथंचित् असद्रूप और कथंचित् उभयरूप होने से अवक्तव्य कहते हैं ?
उत्तर-हे गौतम ! रत्नप्रभा पृथ्वी अपने स्वरूप से सद्रूप है, पर स्वरूप से असद्रूप है और उभयरूप की विवक्षा से सद्-असद्प होने से अबक्तव्य है । इसलिये पूर्वोक्त रूप से कहा गया है।
१३ प्रश्न-हे भगवन् ! शर्कराप्रभा पृथ्वी आत्मरूप ( सद्रूप ) है, .. इत्यादि प्रश्न ।
१३ उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार रत्नप्रभा पृथ्वी का कथन किया है, उसी प्रकार शर्कराप्रभा पृथ्वी के विषय में यावत् अधःसप्तम पृथ्वी तक कहना चाहिये।
१४ प्रश्न-हे भगवन् ! सौधर्म देवलोक सद्रूप है, इत्यादि प्रश्न ।
१४ उत्तर-हे गौतम ! सौधर्म देवलोक कथंचित् सद्रूप है, कथंचित् असद्रूप है और कथंचित् सदसद्रूप होने से अवक्तव्य है।
प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ? ... उत्तर-हं गौतम ! स्व स्वरूप से सद्रूप है, पर स्वरूप से असद्रूप है और उभय की अपेक्षा अवक्तव्य है। इसलिये उपर्युक्त रूप से कहा है । इसी प्रकार यावत् अच्युत कल्प तक जानना चाहिये । ... १५ प्रश्न-हे भगवन् ! ग्रेवेयक विमान सद्रूप है इत्यादि प्रश्न ।
१५ उत्तर-हे गौतम ! रत्नप्रभा पृथ्वी के समान कहना चाहिये । इसी प्रकार अनुत्तर विमान तथा ईषत्प्रागभारा पृथ्वी तक कहना चाहिये।
विवेचन-यहाँ ज्ञान से सम्यग्ज्ञान का और अज्ञान से मिथ्या ज्ञान का ग्रहण किया गया है । 'आत्मा का अर्थ है सद्रूप और अनात्मा का अर्थ है असद्रूप ।' किसी भी वस्तु को एक साथ सद्रूप और असद्रूप नहीं कहा जा सकता । उस दशा में वस्तु अवक्तव्य कहलाती है । रत्नप्रभा पृथ्वी अपने वर्णादि पर्यायों द्वारा सद्प है, पर-वस्तु की पर्यायों से असद्रूप है, स्व-पर पर्यायों से आत्मस्वरूप और अनात्मरूप अर्थात् सद् और असद्रूपइन दोनों द्वारा एक बार कहना अशक्य है। इसलिये यहाँ सद्रूप, असद्रूप और अवक्तव्यये तीन भंग होते हैं।
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