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भगवती सूत्र-श. १२ ३. ९ भध्य द्रव्यादि पांच प्रकार के देव
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३१ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहर्त अधिक दस हजार वर्ष तक और उत्कृष्ट अनन्तकाल-वनस्पति काल पर्यन्त अन्तर होता है।
३२ प्रश्न-हे भगवन् ! नरदेव का अन्तर कितने काल का होता है ?
३२ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य एक सागरोपम से कुछ अधिक और उत्कृष्ट अनन्तकाल, देशोन अपार्द्ध पुद्गल-परावर्तन पर्यन्त अन्तर होता है ।
३३ प्रश्न-हे भगवन् ! धर्मदेव का अन्तर कितने काल का होता है ?
३३ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य पल्योपम पृथक्त्व और उत्कृष्ट अनन्तकाल, देशोन अपार्द्ध पुद्गल-परावर्तन पर्यन्त होता है।
३४ प्रश्न-हे भगवन ! देवाधिदेव का अन्तर कितने काल का होता है ? . ३४ उत्तर-हे गौतम ! देवाधिदेव का अन्तर नहीं होता।
३५ प्रश्न-हे भगवन् ! भावदेव का अन्तर कितने काल का होता है ?
३५ उत्तर-है गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल, वनस्पतिकाल पर्यन्त अन्तर होता है ।
विवेचन--कोई धर्मदेव, अशुभ भाव को प्राप्त करके फिर पीछा एक समय मात्र शुभ भाव को प्राप्त कर तुरन्त मृत्यु को प्राप्त होता है । इसलिये धर्मदेव का जघन्य मंचिट्ठणा काल परिणामों की अपेक्षा से एक समय का कहा गया है।
कोई भव्यद्रव्यदेव होकर दम हजार वर्ष की स्थिति वाले व्यन्तरादि देवों में उत्पन्न हो गया। वहाँ से चवकर शुभ पृथ्वी आदि में चला गया । वहाँ जाकर अन्तर्मुहर्त तक रहा । फिर भव्यद्रव्यदेव रूप से उत्पन्न हो गया। इस प्रकार अन्तर्मुहर्त अधिक दस हजार वर्ष का अन्तर होता है।
शंका-देवलोक से चवकर तुरन्त भव्यद्रव्यदेव रूप से उत्पत्ति का सम्भव होने से दम हजार वर्ष का अन्तर होता है, परन्तु अन्तर्मुहूर्त अधिक कैसे होता है ?
. समाधान-सर्व जघन्य आयुष्य वाला देव, वहाँ से चवकर शुभ पृथ्वी आदि में उत्पन्न होकर भव्यद्रव्यदेव (तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय) में उत्पन्न होता है'-ऐमा प्राचीन टीकाकार का आशय मालूम होता है। उस मत के अनुसार अन्तर्मुहुर्त अधिक दस हजार वर्ष का अंतर होता है । कोई आचार्य इसका समाधाम इस प्रकार भी करते हैं-जिसने देव का आयुष्य बांध लिया है, उसको यहाँ 'भव्यद्रव्यदेव' रूप से समझना चाहिये । इससे दस हजार वर्ष
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