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भगवती सूत्र-श. १२ उ. ६ भव्यद्रव्यादि पांच प्रकार के देव
- ३१ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्साई अंतोमुहत्तमन्भहियाई, उक्कोसेणं अणंतं कालं-वणस्सइकालो।
३२ प्रश्न-णरदेवाणं पुन्छ ।।
३२ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं साइरेगं सागरोवमं, उक्कोसेणं अणंतकालं-अवइदं पोग्गलपरियटै देसूर्ण ।
३३ प्रश्न-धम्मदेवस्स णं पुच्छ ।
३३ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं पलिओवमपहृत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं, जाव अवड्ढं पोग्गलपरियट्टं देसूर्ण ।
३४ प्रश्न-देवाहिदेवाणं पुच्छ । ३४ उत्तर-गोयमा ! णत्थि अंतरं । . ३५ प्रश्न-भावदेवस्स णं पुच्छा।
३५ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं-वणस्सइकालो।
कठिन शब्दार्थ-संचिटणा-संस्थिति ।
भावार्थ-३० प्रश्न-हे भगवन् ! भव्यद्रव्यदेव, भव्यद्रव्यदेव रूप से कितने काल तक रहता है ? .. ३० उत्तर-हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम तक रहता है। जिस प्रकार भवस्थिति कही, उसी प्रकार संस्थिति भी कहनी चाहिये । विशेषता यह कि धर्मदेव जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि वर्ष तक रहता है।
३१ प्रश्न-हे भगवन् ! भग्यनग्यदेव का अंतर कितने काल का होता है ?
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