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भगवती सूत्र-ग. १२ उ. ९ भव्यद्रव्यादि पांच प्रकार के देव
२०९९
उत्पन्न नहीं होते, वैमानिक देवों में उत्पन्न होते हैं। वैमानिकों में वे सभी वैमानिक देवों में यावत् सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिक देवों में उत्पन्न होते हैं और कोई-कोई धर्मदेव सिद्ध होकर समस्त दुःखों का अन्त कर देते हैं।
२८ प्रश्न-हे भगवन् ! देवाधिदेव आयु पूर्ण कर तत्काल कहाँ उत्पन्न होते हैं ?
२८ उत्तर-हे गौतम ! वे सिद्ध होते हैं यावत् समस्त दुःखों का अन्त करते हैं ?
२९ प्रश्न-हे भगवन् ! भावदेव तत्काल आयु पूर्ण कर कहाँ उत्पन्न होते हैं ?
२९ उत्तर-हे गौतम ! प्रज्ञापना सूत्र के छठे व्युत्क्रान्ति पद में, जिस प्रकार असुरकुमारों को उद्वर्तना कही है, उसी प्रकार यहां भावदेवों की भी उद्वर्तना कहनी चाहिये।
विवेचन-यद्यपि कोई चक्रवर्ती देवों में भी उत्पन्न होते हैं, तथापि वे नरदेवपन (चक्रवर्ती पद) छोड़ कर, धर्मदेव पद स्वीकार करके माधु बने, तभी देवों में या सिद्धों में उत्पन्न होते हैं। काम-भोगों का त्याग किये बिना-नरदेव अवस्था में तो वे नरक में ही उत्पन्न होते हैं।
३० प्रश्न-भवियदव्वदेवे णं भंते ! 'भवियदव्वदेवे' त्ति कालओ केवचिरं होइ ? ... ३० उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उकोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं, एवं जच्चेव ठिई सच्चेव संचिट्ठणा वि जाव भावदेवस्स णवरं धम्मदेवस्स जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुवकोडी। । ३१ प्रश्न-भवियदबदेवस्स णं भंते ! केवइयं कालं अंतरं होइ ?
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