________________
२०९४
भगवती मूत्र-श. १२ उ. ९ भव्यद्रव्यादि पांच प्रकार के देव
चउरासीइं पुव्वसयसहस्साई।
२० प्रश्न-भावदेवाणं पुच्छा।
२० उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई।
भावार्थ-१६ प्रश्न-हे भगवन् ! भव्यद्रव्य देवों की स्थिति कितने काल को कही है।
१६ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम । १७ प्रश्न-हे भगवन् ! नरदेवों की स्थिति कितने काल की है ?
१७ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य सात सौ वर्ष और उत्कृष्ट चौरासी लाख पूर्व की है।
१८ प्रश्न-हे भगवन् ! धर्मदेवों की स्थिति कितने काल की है ? १८ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोनपूर्वकोटि । १९ प्रश्न-हे भगवन् ! देवाधिदेवों की स्थिति कितने काल की है ?
१९ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य बहत्तर वर्ष और उत्कृष्ट चौरासी लाख पूर्व की है।
२० प्रश्न-हे भगवन् ! भावदेवों की स्थिति कितने काल की है ?
२० उत्तर-हे गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की है।
विवेचन-अन्तर्मुहूर्त की आयुष्यवाले पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च, देवरूप में उत्पन्न होते हैं, इसलिये भव्यद्रव्यदेव की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की कही गई है । तीन पल्योपम की स्थिति वाले देवकुरु और उत्तरकुरु के मनुष्य और तिर्यञ्च भी देव होते हैं, इसलिये भव्यद्रव्यदेव की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम की है।
नरदेव (चक्रवर्ती) की जघन्य स्थिति सात सौ वर्ष की होती है । ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती की आयु इतनी ही थी। उत्कृष्ट स्थिति चौरासी लाख पूर्व की होती है। भरत चक्रवर्ती
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org