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भगवती सूत्र-श. १२ उ. ५ भव्यद्रव्यादि पांच प्रकार के देव
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तमःप्रभा (छठी नरक) तक में निकले हुए जीव मनुष्य-भव प्राप्त कर सकते हैं, किन्तु चारित्र प्राप्त नहीं कर मकते । अधःमातम पृथ्वी, ते उकाय, वायुकाय, असंख्यात वर्ष की आयुप्य वाले कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज और अन्तरद्वीपज मनुष्य तथा तिर्यञ्च-इनस निकले हुए जीव तो मनुष्य-भव भी प्राप्त नहीं कर सकते । अतएव वे धर्मदेव (चारित्रयुक्त अनगार) नहीं हो सकते ।।
पहली, दूसरी और तीसरी नरक से निकले हुए जीव तीर्थकर पद प्राप्त कर सकते हैं । शेष चार पृथ्वियों से निकले हुए जीव तीर्थंकर नहीं हो सकते । अतः आगे की पृथ्वियों का निषेध किया गया है।
बहुत से स्थानों में आकर जीव भग्नपति देवपने उत्पन्न होते हैं, क्योंकि उनमें असंज्ञी जीव भी उत्पन्न होते हैं. इसलिये यहां भ नपति सम्बन्धी उपपात का कथन किया है।
१६ प्रश्न-भवियदव्वदेवाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता !
१६ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओक्माई। - १७ प्रश्न-णरदेवाणं पुच्छा ।
१७ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं सत्त वाससयाई, उकोसेणं चउरासीई पुवसयसहस्साई।
१८ प्रश्न-धम्मदेवाणं भंते ! पुच्छा।
१८ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुब्बकोडी।
१९ प्रश्न-देवाहिदेवाणं पुन्छ । ___ १९ उत्तर-गोयमा ! जहएणेणं वावत्तरि वासाई, उक्कोसेणं
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