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________________ २०९२ भगवती सूत्र-शः १२ उ. ९ भव्यद्रव्यादि पांच प्रकार के देव ' ११ उत्तर-हे गौतम ! यह सभी वर्णन व्युत्क्रान्ति पद में कथित भेद सहित यावत् सर्वार्थसिद्ध तक उपपात कहना चाहिये, परन्तु इतनी विशेषता है कि तमःप्रभा और अधःसप्तम पृथ्वी से तथा तेउकाय, वायुकाय, असंख्यात वर्ष वाले कर्मभमिज, अकर्मभूमिज और अन्तरद्वीपज मनुष्य तथा तिर्यंचों से आकर धर्मदेव उत्पन्न नहीं होते हैं। १२ प्रश्न-हे भगवन् ! देवाधिदेव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या नरयिकादि चारों गति से आकर उत्पन्न होते हैं ? १२ उत्तर-हे गौतम ! नेरयिक और देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, तिर्यंच और मनुष्य गति से आकर उत्पन्न नहीं होते। १३ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते है, तो क्या रत्नप्रभा आदि के नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते है ? . . . १३ उत्तर-हे गौतम ! प्रथम तीन पृथ्वियों से आकर उत्पन्न होते हैं, शेष पृथ्वियों का निषेध है। १४ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या भवनपति आदि से आकर उत्पन्न होते हैं ? १४ उत्तर-हे गौतम ! सभी वैमानिक देवों से यावत् सर्वार्थ सिद्ध से आकर उत्पन्न होते हैं। शेष देवों का निषेध करना चाहिये। १५ प्रश्न-हे भगवन् ! भावदेव किस गति से आकर उत्पन्न होते हैं ? १५ उत्तर-हे गौतम ! प्रज्ञापना सूत्र के छठे व्युत्क्रान्ति पद में जिस प्रकार भवनवासियों का उपपात कहा है, उसी प्रकार यहां कहना चाहिये। विवेचन-भव्य द्रव्यदेव की उत्पत्ति में असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज और अन्तरदीपज तथा सर्वार्थ सिद्ध के देवों का निपध किया है, इसका कारण यह है कि असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले जीव तथा अकर्मभूमिज और अन्तरद्वीपज तो सीधे भाव देवों में उत्पन्न होते हैं, किन्तु भव्यद्रव्यदेवों (मनुष्य तिर्यञ्च ) में उत्पन्न नहीं होते गौर सर्भिसिद्ध के देव तो भव्यद्रव्य सिद्ध हैं । अर्थात् वे तो मनुष्यभव करके सिद्ध हो जाते हैं, अतः वे मनुष्य में उत्पन्न होकर भी भव्यद्रव्यदेवों में उत्पन्न नहीं होते । . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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