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२०७२
भगवती सूत्र-श. १२ उ. ७ बुकरियों के बाड़े का दृष्टांत
णहेहिं वा अणक्कंतपुव्वे, णो चेव णं एयंसि एमहालयंसि लोगंसि लोगस्स य सासयं भावं, संसारस्स य अणाइभावं, जीवस्स य णिचभावं, कम्मबहुत्तं, जम्मण-मरणवाहुल्लं च पडुच्च गस्थि केइ परमाणुपोग्गलमेत्ते वि पएसे, जत्थ णं अयं जीवे ण जाए वा ण मए वा वि, से तेणट्रेणं तं चेव जाव ण मए वा वि। .
कठिन शब्दार्थ--अयावयं--अजाव ज-बकरियों का बाड़ा ।
भावार्थ-१ प्रश्न-उस काल उस समय में गौतम स्वामी ने इस प्रकार पूछा-"हे भगवन् ! लोक कितना बड़ा है ?"
१ उत्तर-हे गौतम ! लोक बहुत बड़ा है। वह पूर्व दिशा में असंख्य कोटा-कोटि योजन है, इसी प्रकार दक्षिण, पश्चिम और उत्तर दिशा में भी
असंख्य कोटा-कोटि योजन है और इसी प्रकार ऊर्ध्वदिशा और अधोदिशा में ' भी असंख्य कोटा-कोटि योजन आयामविष्कम्भ (लम्बाई चौड़ाई) वाला है।
२ प्रश्न-हे भगवन् ! इतने बड़े लोक में क्या कोई परमाणु-पुद्गल जितना .. भी आकाश-प्रदेश ऐसा है जहाँ पर इस जीव ने जन्म-मरण नहीं किया है ?
२ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं। प्रश्न-हे भगवन इसका क्या कारण है ?
उत्तर-हे गौतम ! जैसे कोई पुरुष सौ बकरियों के लिये एक विशाल अजावज वनवाये उसमें कम से कम एक, दो, तीन और अधिक से अधिक एक हजार बकरियों को रखे और उसमें उनके लिये घास पानी डाल दे। यदि वे बकरियां वहां कम से कम एक, दो, तीन दिन और अधिक से अधिक छह महीने तक रहें।
भगवान् पूछते हैं-"हे गौतम ! उस बाड़े का कोई परमाणु पुद्गल मात्र प्रवेश ऐसा रह सकता है कि जो बकरियों की मल, मूत्र, श्लेष्म, नाम का मैल, वमन, पित्त, शुक्र, रुधिर, चर्म, रोम, सींग, खुर और नख से स्पर्श न किया गया हो ?'
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