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________________ भगवती मूत्र-श. १२ उ. ७ जीवों का अनन्त जन्म-मरण २०७३ गौतम स्वामी उत्तर देते हैं-" हे भगवन् ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।" भगवन कहते हैं कि-"हे गौतम ! कदाचित् उस बाड़े में कोई एक परमाणु-पुद्गल मात्र प्रदेश ऐसा रह भी सकता है कि जो बकरियों के मल यावत् नखों से स्पृष्ट न हुआ हो, तथापि इतने बड़े लोक में, लोक के शाश्वत भाव के कारण, संसार के अनादि होने के कारण, जीव की नित्यता के कारण, कर्म की बहुलता के कारण और जन्म-मरण की बहुलता के कारण कोई भी परमाणु-पुद्गल मात्र प्रदेश ऐसा नहीं है कि जहाँ इस जीव ने जन्म-मरण नहीं किया हो। इस कारण हे गौतम ! उपर्युक्त बात कही गई है।" , विवेचन-मसार का ऐसा कोई भी परमाणु-पुद्गल मात्र प्रदेश गेष नहीं, जहाँ इस जीव ने जन्म-मरण नहीं किया हो । इस बात की पुष्टि के लिये पांच कारण दिये गये हैं। विनाशी के लिये यह बात नहीं हो सकती, अत: कहा गया है कि 'लोक शाश्वत है। लोक के शाश्वत होने पर भी यदि वह सादि (आदि सहित) हो, तो उपर्युक्त बात घटित नहीं हो सकती, इसलिये कहा गया है कि 'लोक अनादि है ।' अनेक जीवों की अपेक्षा संसार यदि अनादि हो और विवक्षित जीव अनित्य हो, तो उपर्युक्त अर्थ घटित नहीं हो सकता, इसलिये कहा गया है कि 'जीव नित्य है।' जीव के नित्य होने पर भी यदि कर्म अल्प हो, तो तथाविध संसार परिभ्रमण नहीं हो सकता और उस दशा में उपर्युक्त अर्थ घटित नहीं हो सकता, इसलिये कर्मों की बहुलता बतलाई गई है। कर्मों की बहुलता होने पर भी यदि जन्म-मरण की अल्पता हो, तो उपर्यक्त अर्थ घटित नहीं हो सकता, अत: जन्मादि की बहलता बतलाई गई है । इन पांच कारणों से इतने बड़े लोक में ऐसा कोई एक भी आकाश प्रदेश नहीं, जहाँ इस जीव ने जन्म-मरण नहीं किया हो । जीवों का अनन्त जन्म-मरण ३ प्रश्न-कइ णं भंते ! पुढवीओ पण्णत्ताओ ? ३ उत्तर-गोयमा ! सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओ, जहा पढमसए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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