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________________ २०७० भगवती सूत्र-श. १२ उ. ७ बकरियों के बाड़े का दृपयांत के काम-भोग अनंतगुण विशिष्ट होते हैं। हे गौतम ! ज्योतिषियों के इन्द्र ज्योतिषियों के राजा चन्द्र और सूर्य इस प्रकार के काम भोगों का अनुभव करते हुए विचरते हैं। ___ "हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है"ऐसा कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन-भगवती शतक दस उद्देशक दस में चन्द्र और सूर्य की अग्रमहिषियां, परिवार आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है। यहाँ काम-भोगों के सुख को जो 'उदार मुग्व' कहा गया है, वह सांसारिक सामान्य जन की अपेक्षा से कहा गया है । वास्तव में तो काम-भोग सम्बन्धी सुख सुख नहीं है, किन्तु सुखाभास है और दुःख रूप है । संसारी लोगों ने दुःख रूप काम-भोगों को भी सुग्वरूप मान लिया है । यह केवल उनकी विडम्बना मात्र है। ॥ बारहवें शतक का छठा उद्देशक सम्पूर्ण ॥ शतक १२ उद्देशक ७ बकरियों के बाड़े का दृष्टांत १ प्रश्न-तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव एवं वयासी-केमहालए णं भंते ! लोए पण्णत्ते ? ____१ उत्तर-गोयमा ! महतिमहालए लोए पण्णत्ते, पुरत्थिमेणं असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ, दाहिणेणं असंखिज्जाओ एवं चेव, एवं पञ्चत्थिमेण वि, एवं उत्तरेण वि, एवं उड्ढे पि, अहे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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