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भगवती मुग-ग. १२ उ. : वाद्र पूर्व के भोग
२०६९
निमित्तक भोग भोगने में समर्थ नहीं है"-तक कहना चाहिये । सूर्य के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार कहना चाहिये।
६ प्रश्न-हे भगवन् ! ज्योतिषियों के इन्द्र, ज्योतिषियों के राजा चन्द्र और सूर्य किस प्रकार के काम-भोग भोगते हुए विवरते हैं ?
६ उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार प्रथम युवा अवस्था के प्रारम्भ में किती बलवान् पुरुष ने युवावस्था में प्रविष्ट होती हुई किसी बलशाली कन्या के साथ नया ही विवाह किया और इसके बाद ही वह पुरुष अर्थोपार्जन करने के लिये परदेश चला गया और सोलह वर्ष तक विदेश में रहकर धनोपार्जन करता रहा, फिर सभी कार्यों को समाप्त करके वह निविघ्न रूप से लौटकर अपने घर आया। फिर स्नानादि तथा विघ्न निवारणार्थ कौतुक और मंगल रूप प्रायश्चित करे, फिर सभी अलंकारों से अलंकृत होकर, मनोज्ञ स्थालीपाक विशुद्ध अठारह प्रकार के व्यञ्जनों से युक्त भोजन करे, तत्पश्चात् महाबल के उद्देशक में वणित वासगृह के समान शयनगृह में, शृंगार की गृहरूप सुन्दर वेषवाली यावत् ललित कलायुक्त, अनुरक्त, अत्यन्त रागयुक्त और मनोऽनुकूल स्त्री के साथ वह इष्ट शब्द-स्पर्शादि पांच प्रकार के . मनुष्य सम्बन्धी काम-भोग सेवन करता है। वेदोपशमन (विकार शान्ति) के समय में " हे गौतम ! वह पुरुष किस प्रकार के सुख का अनुभव करता है ?" (गौतम स्वामी कहते हैं कि) "हे भगवन् ! वह पुरुष उदार सुख का अनुभव करता है" (भगवान् फरमाते हैं कि) "हे गौतम! उस पुरुष के काम-भोगों की अपेक्षा वाणव्यन्तर देवों के काम-भोग अनन्त गुण विशिष्ट होते हैं । वाणव्यन्तर देवों के काम-भोगों से असुरेन्द्र के सिवाय शेष भवनवासी देवों के काम-भोग अनन्तगुण विशिष्ट होते हैं। शेष भवनवासी देवों के काम-भोगों से असुरकुमार देवों के काम-भोग अनन्तगुण विशिष्ट होते हैं । असुरकुमार देवों के काम-भोगों से ज्योतिषी देवरूप ग्रहगण, नक्षत्र और तारा देवों के काम-भोग अनन्त गुण विशिष्ट होते हैं । ज्योतिषी देव रूप ग्रहग ग, नक्षत्र और तारा के देवों के कामभोग से ज्योतिषियों के इन्द्र, ज्योतिषियों के राजा चन्द्र और सूर्य
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