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________________ २०६८ भगवती मूत्र-ग. १२ उ ६ चन्द्र सूर्य के भोग वमाणे विहरइ ? ओरालं समणाउसो ! तस्स णं गोयमा ! पुरिसस्स कामभोगेहिंतो वाणमंतराणं देवाणं एत्तो अणंतगुणविसिट्ठतरा चेव कामभोगा; वाणमंतराणं देवाणं कामभोगेहितो असुरिंद वज्जियाणं भवणवासीणं देवाणं एत्तो अणंतगुणविसिद्धतरा चेव कामभोगा; असुरिंदवजियाणं भवणवासियाणं देवाणं कामभोगेहितो असुरकुमाराणं देवाणं एत्तो अणंतगुणविमिट्टतरा चेव कामभोगा; असुरकुमाराणं देवाणं कामभोगेहिंतो गहगण-णक्णत्त तारा-रूवाणं जोइसियाणं देवाणं एत्तो अणंतगुणविसिट्टतरा चेव कामभोगा; गहगण णक्खत्त-जाव कामभोगेहिंतो चंदिम-सूरियाणं जोइसियाणं जोइसराईणं एत्तो अणंतगुणविसिट्टतरा चेव कामभोगा; चंदिमसूरिया णं गोयमा ! जोइसिंदा जोइसरायाणो एरिसे कामभोगे पच्चणुव्भवमाणा विहरति । . * सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति भगवं गोयमे ममणं भगवं महा. वीरं जाव विहरइ * ॥ छट्ठओ उद्देसओ समत्तो ॥ • कठिन शब्दार्थ-पच्चणुम्भवमाणा-अनुभव करते हुए। भावार्थ-५ प्रश्न-हे भगवन् ! ज्योतिषियों के इन्द्र, ज्योतिषियों के राजा चन्द्रमा के कितनी अग्रमहिषियां हैं ? . ५ उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार दशवें शतक के दशवें उद्देशक में कहा है, उस प्रकार जानना चाहिये, यावत् "अपनी राजधानी में सिंहासन पर मैथुन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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