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भगवती सूत्र-श. ९ उ. ३१ सोच्चा केवली
कहनी चाहिये । यावत् जिस के मनःपर्यय ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशन हुआ है और जिस जीव ने केवलज्ञानावरणीय कर्म का क्षय किया है, उस जीव को केवली आदि के पास से सुनकर केवलिप्ररूपित धर्म का बोध होता है, शुद्ध सम्यक्त्व का बोध होता है यावत् केवलज्ञान की प्राप्ति होती है।
३४-तस्स णं अट्ठमंअट्टमेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणस्स पगइभद्दयाए, तहेव जाव गवेसणं करेमाणस्स ओहिणाणे समुप्पज्जइ, से णं तेणं ओहिणाणेणं समुप्पण्णेणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं असंखेज्जाई अलोए लोयप्पमाणमेत्ताइं खंडाइं जाणइ पासइ ।
३५ प्रश्न-से णं भंते ! कइसु लेस्सासु होज्जा ? ...... ____३५ उत्तर-गोयमा ! छसु लेसासु होज्जा, तं जहा-कण्हलेस्साए, जाव सुक्कलेस्साए। ., ३६ प्रश्न-से णं भंते ! कइसु णाणेसु होन्जा ? ... - ३६ उत्तर-गोयमा ! तिसु वा, चउसु वा होज्जा; तिसु होज्ज. माणे तिसु आभिणियोहियणाण-सुयणाण-ओहिणाणेसु होज्जा, चउसु होज्जमाणे आभिणियोहियणाण-सुयणाण-ओहिणाण-मणपज्जवणाणेसु होज्जा।
कठिन शम्बार्थ-अटुमंअट्टमेणं-अष्टम-अष्टम (तेले-तेले की तपस्या), अणिक्खित्तेणेनिरनर, अलोए लोयप्पमाणमेत्ताई-अलोक में लोक प्रमाण।
- भावार्थ-३४ केवली आदि के पास से धर्मप्रतिपादक वचन सुनकर
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