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• भगवती सूत्र-. . ३१ मोच्चा केवली
१.०३
सम्यग्दर्शनादि प्राप्त जीव को निरन्तर तेले-तेले की तपस्या द्वारा आत्मा को भावित करते हुए, प्रकृति की भद्रता आदि गुणों से यावत् ईहा, अपोह, मार्गण गवेषण करते हुए अवधिज्ञान उत्पन्न होता है। उस उत्पन्न हुए अवधिज्ञान के द्वारा वह जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट अलोक में लोक प्रमाण असंख्य खण्डों को जानता और देखता है।
३५ प्रश्न-हे भगवन् ! वह अवधिज्ञानी जीव, कितनी लेश्याओं में होता है ?
३५ उत्तर-हे गौतम ! वह छहों लेश्याओं में होता है । यथा-कृष्ण लेश्या यावत् शुक्ल लेश्या ।
३६ प्रश्न-हे भगवन् ! वह अवधिज्ञानी कितने ज्ञान में होता है ?
३६ उत्तर-हे गौतम ! वह तीन ज्ञान अथवा चार ज्ञान में होता है । यदि तीन ज्ञान में होता है, तो आभिनिबोधिक ज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान में होता है, यदि चार ज्ञान में होता है, तो आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनःपर्ययज्ञान में होता है।
३७ प्रश्न-से णं भंते ! किं सजोगी होजा, अजोगी होना ? .३७ उत्तर-एवं जोगो, उवओगो, संघयणं, संठाणं, उच्चत्तं, आउयं च एयाणि सव्वाणि जहा असोचाए तहेव भाणियब्वाणि । .. ३८ प्रश्न-से णं भंते ! किं सवेदए-पुच्छा ? ..
३८ उत्तर-गोयमा ! सवेदए वा होज्जा, अवेदए वा होजा ।
३९ प्रश्न-जइ अवेदए होजा किं उवसंतवेदए होजा, खीणवेदए होजा ?
३९ उत्तर-गोयमा ! णो उवसंतवेदए होज्जा, खीणवेदए
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