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'भगवती मूत्र-श. १. उ. ३१ सोच्चा केवली
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सोच्चा केवली
३३ प्रश्न-सोच्चा णं भंते ! केवलिस्स वा, जाव तप्पक्खियउवासियाए वा केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्जा सवणयाए ?
३३ उत्तर-गोयमा ! सोच्चा णं केवलिस्स वा, जाव अत्थे. गइए केवलिपण्णत्तं धम्मं, एवं जा चेव असोच्चाए, वत्तव्वया सा चेव सोबाए वि भाणियव्वा, णवरं अभिलावो ‘सोच्चे' त्ति, सेसं तं चेव णिरव नेसं, जाव जम्स णं मणपज्जवणाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे कडे भवड़, जस्स णं केवलणाणावरणिज्जाणं कम्माणं खए कडे भवइ से णं मोच्चा केवलिस्स वा, जाव उवासियाए वा केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्जा सवणयाए, केवलं बोहिं बुझेजा, जाव केवलणाणं उप्पाडेजा।
कठिन शब्दार्थ-सोच्चाणं-सुनकर, सवणयाए-श्रुतज्ञानरूप बोध । • 'भावार्थ-३३ प्रश्न-हे भगवन् ! केवली यावत् केवलिपाक्षिक की उपासिका के पास धर्म-प्रतिपादक वचन सुनकर कोई जीव, केवलिप्ररूपित धर्म का बोध प्राप्त कर सकता है ?
३३ उत्तर-हे गौतम ! केवली यावत् केवलिपाक्षिक की उपासिका में से किसी के पास धर्मप्रतिपादक वचन सुनकर कोई जीव केवलिप्ररूपित धर्म का बोध प्राप्त करता है और कोई नहीं करता। इस विषय में जिस प्रकार 'असोच्चा' की वक्तव्यता कही, उसी प्रकार 'सोच्चा' की भी कहनी चाहिये, परन्तु यहां 'सोच्चा' ऐसा पाठ कहना चाहिये । शेष सभी पूर्वोक्त वक्तव्यता
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