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________________ २०६४ भगवती सूत्र-श. १२ उ. ६ नित्यराहु पर्वराहु के प्रकाश को नीचे से, चारों दिशाओं से और चारों विदिशाओं से ढक देता है, तव मनुष्य कहते हैं कि 'राहु ने चन्द्रमा को ग्रसित कर लिया है।' विवेचन-राहु और चन्द्रमा के विमान की अपेक्षा 'ग्रहण' कहलाता है । विमानों में ग्रासक और ग्रसनीय भाव नहीं समझना चाहिये, किन्तु आच्छादक और आच्छाद्य भाव है और इसो को 'ग्रास' होना कहा गया है । यह ग्रास (राहु के द्वारा चन्द्र का आच्छादन) वंम्रसिक (स्वाभाविक) है । नित्यराहु पर्वराहु २ प्रश्न-कइविहे णं भंते ! राहू पण्णत्ते ? २ उत्तर-गोयमा ! दुविहे राहू पण्णत्ते, तं जहा-धुवराहू य पव्वराहू य । तत्थ णं जे से धुवराहू से गं बहुलपक्खस्स पाडिवए पण्णरसइभागेणं पण्णरसइभागं चंदस्स लेस्सं आवरेमाणे २ चिट्ठइ, तंजहा-पढमाए पढमं भागं, वितियाए वितियं भागं, जाव पण्णरसेसु पण्णरसमं भागं, चरिमसमये चंदे रत्ते भवइ, अवसेसे समये चंदे रत्ते य विरत्ते य भवइ, तमेव सुक्कपक्खस्स उवदंसेमाणे २ चिट्ठइ, पढमाए पढमं भागं जाव पण्णरसेसु पण्णरसमं भाग, चरिमसमये चंदे विरत्ते भवइ; अवसेसे समये चंदे रत्ते य विरत्ते य भवइ । तत्थ णं जे से पव्वराहू से जहण्णणं छण्हं मासाणं उक्कोसेणं बायालीसाए मासाणं चंदस्स, अडयालीसाए संवच्छराणं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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