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भगवती सूत्र-श. १२ उ. ६ नित्यराहु पर्वराहु
२०६५
" ३ प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं वुचइ-'चंदे ससी', 'चंदे ससी' ? ... ३ उत्तर-गोयमा ! चंदस्स णं जोइसिंदस्स जोइसरण्णो मियंके विमाणे कंता देवा कंताओ देवीओ कंताई आसण-सयण-खंभभंडमत्तोवगरणाई, अप्पणा वि य णं चंदे जोइसिंदे जोइसराया सोमे कंते सुभए पियदंसणे सुरूवे, से तेणटेणं जाव ससी। ____४ प्रश्न-से केण?णं भंते ! एवं वुच्चड्-'सूरे आइच्चे,' 'सूरे आइच्चे' ?
४ उत्तर-गोयमा ! सूरादिया णं समया इ वा आवलिया इ वा जाव उस्सप्पिणी इ वा अवसप्पिणी इ वा, से तेणटेणं जाव आइच्चे।
कठिन शब्दार्थ-मियंके-मृगाङ्क, आइच्चे-आदित्य । ...
भावार्थ-२ प्रश्न-हे भगवन् ! राहु कितने प्रकार का कहा है ? ... २ उत्तर-हे गौतम ! राहु दो प्रकार का कहा है। यथा-ध्रुव-राहु (नित्य-राहु) और पर्व राहु । जो ध्रुव राहु है, वह कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से लेकर प्रतिदिन अपने पन्द्रहवें भाग से, चन्द्र-बिम्ब के पन्द्रहवें भाग को ढकता रहता है । यथा-प्रतिपदा को प्रथम भाग ढकता है, द्वितीया के दिन दूसरे भाग को ढकता है, इस प्रकार यावत् अमावस्या के दिन चन्द्रमा के पन्द्रहवें भाग को ढकता है । कृष्ण पक्ष के अन्तिम समय में चन्द्रमा रक्त (सर्वथा आच्छादित) हो जाता है और दूसरे समय में चन्द्र रक्त (अंश से आच्छादित) और विरक्त अंश से अनाच्छादित रहता है । शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से लेकर प्रतिदिन चन्द्र के प्रकाश का पन्द्रहवां भाग खुला होता जाता है। यथा-प्रतिपदा के दिन पहला भाग खुला होता है यावत् पूर्णिमा के दिन पन्द्रहवां भाग खुला हो जाता है।
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