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भगवती मूत्र-ग. १२ उ. ६ चन्द्रमा को गहु ग्रसता है ?
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वाला है । वह उत्तम वस्त्र, उत्तम माला, उत्तम सुगंध और उत्तम आभूषणों को धारण करने वाला देव है। उस राहु देव के नौ नाम कहे हैं । यथा-१ शृंगाटक २ जटिलक ३ क्षत्रक ४ खर ५ दर्दुर ६ मकर ७ मत्स्य ८ कच्छप और ९ कृष्णसर्प। राहु के विमान पांच वर्णों वाले कहे हैं। यथा-१ काला २ नीला ३ लाल ४ पीला और ५ श्वेत, इनमें से राहु का जो काला विमान है, वह खंजन (काजल) के समान वर्ण वाला है, जो नीला (हरा) विमान है, वह कच्चे तुम्बे के समान वर्ण वाला है, जो लाल विमान है, वह मजीठ के समान वर्ण वाला है, जो पीला विमान है, वह हल्दी के समान वर्ण वाला है और जो श्वेत विमान है, वह भस्मराशि (राख के ढेर) के समान वर्ण वाला है। जब आता-जाता हआ, विकुर्वणा करता हआ, तथा काम-क्रीड़ा करता हुआ राहु देव, पूर्व में रहे हुए चन्द्रमा के प्रकाश को. ढक कर पश्चिम की ओर जाता है, तब पूर्व में चन्द्र दिखाई देता है और पश्चिम में राह दिखाई देता है, जब पश्चिम में चन्द्रमा के प्रकाश को ढक कर पूर्व की
ओर जाता है, तब पश्चिम में चन्द्रमा दिखाई देता है और पूर्व में राहु दिखाई देता है । जिस प्रकार पूर्व और पश्चिम के दो आलापक कहे हैं, उसी प्रकार दक्षिण और उत्तर के दो आलापक कहना चाहिये, इसी प्रकार उत्तर-पूर्व (ईशानकोण) और दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्यकोण) के दो आलापक कहना चाहिये और इसी प्रकार दक्षिण-पूर्व (अग्निकोण) और उत्तर-पश्चिम (वायव्यकोण) के दो आलापक कहना चाहिये। इसी प्रकार यावत् जब उत्तर-पश्चिम में चन्द्र दिखाई देता है और दक्षिण-पूर्व में राहु दिखाई देता है एवं जब गमनागमन करता हुआ, विकुर्वणा करता हुआ अथवा काम-क्रीड़ा करता हुआ राहु, चन्द्रमा के प्रकाश को आवृत करता है, तब मनुष्य कहते हैं कि 'चन्द्रमा को राहु ग्रसता है, इसी प्रकार जब राहु चन्द्रमा के प्रकाश को आवृत करता हुआ निकट से निकलता है, तब मनुष्य कहते हैं कि 'चन्द्रमा ने राहु की कुक्षि का भेदन कर दिया' । इसी प्रकार राहु जब चन्द्रमा के प्रकाश को ढकता हुआ पोछा लौटता है, तब मनुष्य कहते हैं कि 'राहु ने चन्द्रमा का वमन कर दिया । इसी प्रकार जब राहु चन्द्रमा
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