________________
२०६२
भगवती सूत्र-श. १२ उ. ६ चन्द्रमा को राहु ग्रसता है ?
आलावगा भाणियव्वा, एवं चेव जाव तया णं उत्तरपञ्चत्थिमेणं चंदे उवदंसेइ, दाहिणपुरस्थिमेणं राहू । जया णं राहू आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदलेस्सं आवरेमाणे २ चिटइ तया णं मणुस्सलोए मणुस्सा वयंति-‘एवं खलु राहू चंदं गेण्हइ, एवं०' । जया णं राहू आगच्छमाणे ४ चंदस्स लेस्सं आवरित्ता णं पासेणं वीईवयइ तया णं मणुस्सलोए मणुस्सा वयंति-‘एवं खलु चंदेणं राहुस्स कुच्छी भिण्णा, एवं०' । जया णं राहू आगच्छमाणे वा ४ चंदस्स लेस्सं आवरित्ता णं पचोसक्का तया णं मणुस्सलोए मणुस्सा वयंति-'एवं खलु राहुणा चंदे वंते, एवं०' । जया णं राहू आगच्छमाणे वा जाव परियारेमाणे वा चंदलेस्सं अहे सपक्खि सपडिदिसिं आवरित्ता णं चिट्ठइ तया णं मणुस्सलोए मणुस्सा वयंति-‘एवं खलु राहुणा चंदे घत्थे, एवं०' ।
कठिन शब्दार्थ-सपक्खि-समान दिशा में। सपडिदिसि-समान विदिशा में । घत्थेग्रसित किया।
भावार्थ-१-राजगृह नगर में यावत् गौतम स्वामी ने इस प्रकार पूछा-हे भगवन् ! बहुत-से मनुष्य इस प्रकार कहते हैं और परूपणा करते हैं कि 'राहु चन्द्रमा को ग्रसता है, तो हे भगवन् ! 'राहु चन्द्रमा को ग्रसता है' यह किस प्रकार हो सकता है ?
१ उत्तर-हे गौतम ! बहुत-से मनुष्य परस्पर यों कहते हैं और परूपणा करते हैं कि 'राहु चन्द्रमा को ग्रसता है-यह मिथ्या है । हे गौतम ! में इस प्रकार कहता हूँ तथा परूपणा करता हूँ कि राहु महद्धिक यावत् महासौख्य
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org