________________
२०५६
भगवती सूत्र-श. १२ उ. ५ अवकाशान्तरादि में वर्णादि
वण्णा जाव अट्ठफासा पण्णत्ता; कम्मगं जीवं च पडुच जहा णेरइ. याणं, वाणमंतर-जोइसिय वेमाणिया जहा णेरइया । धम्मत्थिकाए जाव पोग्गलत्थिकाए-एए सब्बे अवण्णा जाव अफासा, गवरं पोग्गलत्थिकाए पंचवण्णे, पंचरसे, दुगंधे, अट्ठफासे पण्णत्ते । णाणावरणिज्जे जाव अंतराइए-एयाणि चउफासाणि। . .
१६ प्रश्न-कण्हलेसा णं भंते ! कइवण्णा-पुच्छा ।
१६ उत्तर-दबलेसं पडुच्च पंचवण्णा जाव अट्ठफासा पण्णत्ता, भावलेसं पडुच्च अवण्णा ४ एवं जाव सुक्कलेस्सा। सम्मद्दिट्ठि ३, चखुदंसणे ४; आभिणिवोहियणाणे ५ जाव विभंगणाणे, आहार. सण्णा, जाव परिग्गहसण्णा-एयाणि अवण्णाणि ४ । ओरालियसरीरे, जाव तेयगसरीरे-एयाणि अट्ठफासाणि । कम्मगसरीरे चउ- .. फासे, मणजोगे, वयजोगे य चउफासे कायजोगे अटफासे । सागा. रोवओगे य अणागारोवओगे य अवण्णा ।
भावार्थ-१५ प्रश्न-हे भगवन् ! मनुष्य कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाले हैं।
१५ उत्तर-हे गौतम ! औदारिक, वैक्रिय, आहारक और तेजसं पुद्गलों की अपेक्षा पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श वाले हैं। कार्मण पुदगल और जीव की अपेक्षा नैरयिकों के समान जानना चाहिए और नरयिकों के समान ही वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिकों का कथन करना चाहिये । धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और काल-ये वर्ण, गन्ध, रस, और ..
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org