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भगवती सूत्र-शः १२ उ: ५ अवकाशान्तरादि में वर्णादि
२०५५
पृथ्वी तक जानना चाहिये। जम्बूद्वीप यावत् स्वयम्भूरमण समुद्र, सौधर्मकल्प यावत् ईषत्प्रागभारा पृथ्वी, नरयिकवास चावत वैमानिकवास, ये सब आठ स्पर्शवाले हैं।
१३ प्रश्न-हे भगवन् ! नरयिकों में कितने वणं, गन्ध, रस और स्पर्श हैं ?
१३ उत्तर-हे गौतम ! वैक्रिय और तेजस पुद्गलों की अपेक्षा वे पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्शवाले हैं। कार्मण पुद्गलों की अपेक्षा पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और चार स्पर्शवाले हैं। जीव की अपेक्षा वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श रहित हैं। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक कहना चाहिये।
१४ प्रश्न-हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्शवाले हैं ?
१४ उत्तर-हे गौतम ! औदारिक और तेजस पुद्गलों की अपेक्षा पांच:.. वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श वाले हैं। कार्मण की अपेक्षा और जीव की अपेक्षा पूर्ववत्-नरयिकों के कथन के समान जानना चाहिये । इसी प्रकार यावत् चौइन्द्रिय तक जानना चाहिये। परन्तु इतनी विशेषता है कि वायकायिक औदारिक, वैक्रिय और तेजस पुद्गलों की अपेक्षा पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श वाले हैं। शेष नरयिकों के समान जानना चाहिये । पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों का कयन भी वायुकायिकों के समान जानना चाहिये ।
- विवेचन-पहली और दूसरी नरक पृथ्वी के बीच का आकाश-खण्ड प्रथम 'अवका. शान्तर' कहलाता है, उसकी अपेक्षा सप्तम नरक पृथ्वी के नीचे का आकाश-खण्ड 'सप्तम अवकाशान्तर' कहलाता है । उसके ऊपर सातवां धनवात है । उसके ऊपर सातवां घनोदधि है और उसके ऊपर सातवीं नरक पृथ्वी है । इसी क्रम से प्रथम नरक पृथ्वी तक जानना चाहिये । तनुवात आदि पौद्गलिक होने से मूर्त है, अतएव वे वर्णादि वाले हैं। वादर परिणाम वाले होने से इनमें आठ स्पर्श होते हैं।
_ १५ प्रर-मणुस्साणं पुच्छ । .....१५ उचर-ओरालिय-वेउन्विप-आहारग-तेयगाई पड्डुच पंच.
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