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२०५४
भगवती सूत्र - १२ उ. ५ अवकाशान्तरादि में वर्णादि
१३ प्रश्न - रइया णं भंते ! कड़वण्णा, जाव कइफासा पण्णत्ता । १३ उत्तर - गोयमा ! वेउब्विय तेयाई पडुच्च पंचवण्णा, पंचरसा, दुग्गंधा, अट्ठफासा पण्णत्ता, कम्मगं पडुच्च पंचवण्णा, पंचरसा, दुगंधा, चउफासा पण्णत्ता, जीवं पडुच्च अवण्णा, जाव अफासा पण्णत्ता, एवं जाव थणियकुमारा ।
१४ प्रश्न - पुढविक्काइयाणं पुच्छा ।
१४ उत्तर - गोयमा ! ओरालिय-तेयगाई पडञ्च पंचवण्णा जाव अट्ठफासा पण्णत्ता, कम्मगं पडुच्च जहा णेरइयाणं, जीवं पडुच्च तहेव, एवं जाव चउरिंदिया । णवरं वाउक्काइया ओरालियवे उब्विय-तेयगाई पडुच पंचवण्णा, जाव अटुफासा पण्णत्ता; सेसं जहा णेरइयाणं । पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जहा वाउवकाइया ।
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कठिन शब्दार्थ-उवासंतरे - अवकाशांतर ।
भावार्थ - ११ प्रश्न - हे भगवन् ! सातवें अवकाशान्तर में कितने वर्ण, गंध, रस और स्पर्श हैं ?
११ उत्तर - हे गौतम ! वह वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श रहित है ।
१२ प्रश्न - हे भगवन् ! सातवां तनुवात, कितने वर्णादि युक्त है ?
१२ उत्तर - हे गौतम ! प्राणातिपात के समान कहना चाहिये, किंतु इतनी विशेषता है कि यह आठ स्पर्शवाला है। सातवें तनुवात के समान सातवां घनवात धनोदधि और सातवीं पृथ्वी कहनी चाहिये । छठा अवकाशान्तर वर्णादि रहित है। छठा तनुवात, घनवात घनोवधि और छड़ो पृथ्वी, ये सब आठ स्पर्श वाले । जिस प्रकार सातवीं पृथ्वी की वक्तव्यता कहीं है, उसी प्रकार यावत् प्रथम
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