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________________ भगवती सूत्र - १२ उ ५ अवकाशान्तरादि में वर्णादि अवाय - ईहा से जाने हुए पदार्थों में निश्चयात्मक ज्ञान होना अवाय कहलाता है । धारणा - अवाय से जाना हुआ पदार्थों का ज्ञान इतना दृढ़ हो जाय कि कालान्तर में भी उसका विस्मरण न हो, तो उसे धारणा कहते हैं । र्यान्तराय कर्म के क्षय या क्षयोपशम मे उत्पन्न होने वाले जीव के परिणाम विशेषों को उत्थानादि कहते हैं। उत्थान शारीरिक चेष्टा विशेष कर्म - भ्रमणादि क्रिया । बल- शारीरिक सामर्थ्यं । वीर्यं जीव प्रभाव अर्थात् आत्मिक शक्ति । पुरुषकारपराक्रमस्वाभिमान विशेष । आपत्तिकी बुद्धि आदि चार, अवग्रहादि चार और उत्थानादि पांच ये सभी जीव के उपयोग विशेष हैं । अतः अमूर्त होने से वर्णादि रहित हैं । २०५३ अवकाशान्तरादि में वर्णादि ११ प्रश्न - सत्तमे णं भंते! उवासंतरे कड़वण्णे ? ११ उत्तर - एवं चैव जाव अफासे पण्णत्ते । १२ प्रश्न - सत्तमे णं भंते ! तणुवाए कड़वणे ? Jain Education International १२ उत्तर - जहा पाणाइवाए, णवरं अडफासे पण्णत्ते, एवं जहा सत्तमेतत्राएं तहा सत्तमे घणवाए, घणोदही, पुढवी । छट्टे उवासंतरे अवण्णे, तणुवाए जाव छट्ठी पुढवी- एयाई अटुफासाई, एवं जहा सत्तमाए पुढवीए वत्तव्वया भणिया तहा जाव पढमाए पुढ वीए भाणियव्वं । जंबुद्दीवे दीवे जाव सयंभुरमणे समुद्दे, सोहम्मे कप्पे, जाव ईसिप भारा पुढवी, णेरइयावासा, जाव वेमाणियावासा - एयाणि सव्वाणि अडफासाणि । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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