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मगवती सूत्र-रा. १२ . ५ पाप कर्म के वर्णादि पर्याय
सल्ले - एस णं कइवपणे ?
६ उत्तर - जहेब कोहे तहेव चउफासे ।
कठिन शब्दार्थ- पेज्जे- प्रेम - राग, दोसे-द्वेष |
भावार्थ-४ प्रश्न - हे भगवन् ! माया, उपधि, निकृति, वलय, गहन, नूम, कल्क, कुरूपा, जिह्मता, किल्विष, आदरणता ( आचरणता) गूहनता, वञ्चनता, प्रति कुंचनता और सातियोग- इन सभी में कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श हैं ? ४ उत्तर - हे गौतम ! इन सभी का कथन क्रोध के समान जानना चाहिए ।
५ प्रश्न - हे भगवन् ! लोभ, इच्छा, मूच्र्छा, कांक्षा, गृद्धि, तृष्णा, भिध्या, अभिध्या, आशंसना, प्रार्थना, लालपनता, कामाशा, भोगाशा, जीविताशा, मरणाशा और नन्दिराग- इनमें कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श हैं ।
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५ उत्तर - हे गौतम! क्रोध के समान समझना चाहिए ।
६ प्रश्न - हे भगवन् ! प्रेम-राग, द्वेष, कलह यावत् मिथ्यादर्शन शल्य, इनमें कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श हैं ?
६ उत्तर - हे गौतम ! क्रोध के समान जानो ।
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विवेचन- १ माया - यह 'माया' का सामान्य वाचक नाम है । 'उपधि' आदि उसके भेद हैं । २ उपधि - किसी को ठगने के लिए प्रवृत्ति करना । ३ निकृति - किसी का आदर सत्कार करके फिर उसके साथ 'माया' करना, अथवा एक मायाचार छिपाने के लिए दूसरा भायाचार करना । ४ वलय- किसी को अपने जाल में फँसाने के लिए मीठे वचन बोलना । ५ गहन - दूसरों को ठगने के लिए अव्यक्त शब्दों का उच्चारण करना, अथवा ऐसे गहन (गूढ ) अर्थ वाले शब्दों का प्रयोग करके जाल रचना कि दूसरे की समझ में ही न आवे ।
नूम - मायापूर्वक नीचता का आश्रय लेना । ७ कल्क- हिसाकारी उपायों से दूसरे को ठगना । ८ कुरूपा - निन्दित रीति से मोह उत्पन्न करके ठगने की प्रवृत्ति करना । ९ जिह्मता - कुटिलतापूर्वक ठगने की प्रवृत्ति । १० किल्विष - किल्विषी जैसी प्रवृत्ति करना । ११ आदरणता( आचरणता ) मायाचार से किसी का आदर करना, अथवा ठगाई के लिए अनेक प्रकार की क्रियाएँ करना । १२ गूहनता अपने स्वरूप को छिपाना । १३ वञ्चनता - दूसरे को ठगना ।
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