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भगवती सूत्र - १२ उ. ५ पाप कर्म के वर्णादि पर्याय
हैं । २ मद-मद करना या हर्ष करना, दर्प (दुप्तता ) घमण्ड में चूर होना, ४ स्तंभ-नम्र न होना, स्तंभ की तरह कठोर बने रहना । ५ गर्व - अहंकार, ६ अत्युत्कोश - अपने को दूसरों से उत्कृष्ट मानना - बताना, ७ परपरिवाद-दूसरे की निन्दा करना । अथवा 'परपरिपात' दूसरे को उच्च गुणों से पतित करना, ८ उत्कर्ष - क्रिया से अपने आपको उत्कृष्ट मानना । अथवा अभिमान पूर्वक अपनी समृद्धि प्रकट करना, ९ अपकर्ष - अपने से दूसरे को तुच्छ बताना, १० उन्नत - विनय का त्याग करना, 'उन्नय' अभिमान से नीति का त्याग कर अनीति में प्रवृत्त होना, ११ उन्नाम-वन्दन योग्य पुरुष को भी वन्दन न करना, अथवा अपने को नमस्कार करने वाले पुरुष को न नमना एवं सद्भाव न रखना, और १२ . दुर्नाम - वन्दनीय पुरुष को भी अभिमानपूर्वक बुरे ढंग से वंदन करना । ये 'स्तंभ' आदि मान के कार्य हैं, अथवा ये सभी शब्द 'मान' के एकार्थक शब्द हैं ।
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४ प्रश्न - अह भंते ! १ माया, २ उवही, ३ णियडी, ४ वलये, ५ गहणे, ६ णूमे, ७ कक्के, ८ कुरुए, ९ जिम्हे, १० किव्विसे, ११ आयरणया, १२ ग्रहणया, १३ वंचणया १४ पलिउंचणया, १५ साइजोगे य- एस णं कड़वण्णे ४ पण्णत्ते ?
४ उत्तर - गोयमा ! पंचवण्णे, जहेव कोहे ।
५ प्रश्न - अह भंते ! १ लोभे २ इच्छा ३ मुच्छा ४ कंखा - ५ गेही ६ तण्हा, ७. भिज्झा ८ अभिज्झा ९ आसासणया १० पत्थया ११ लालप्पणया १२ कामासा १३ भोगासा १४ जीवियासा १५ मरणामा १६ मंदीरागे - एस णं कइवण्णे ४ ?
५ उत्तर - जहेब कोहे |
६ प्रश्न - अह भंते ! पेज्जे, दोसे, कलहे, जाव मिच्छादंसण
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