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मंगवती सूत्र -श. १२ उ. ५ पाप कर्म के वर्णादि पर्याय
चाण्डक्य, भण्डन और विवाद- ये सभी कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्शवाले कहे हैं ?
२ उत्तर - हे गौतम ! ये पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस और चार स्पर्श कहे हैं ।
باره:
३ प्रश्न - हे भगवन् ! मान, मद, दर्प, स्तम्भ, गर्व, अत्युत्क्रोश, परपरिवाद, उत्कर्ष, अपकर्ष, उन्नत, उन्नाम, दुर्नाम- ये सभी कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्शवाले कहे हैं ?
३ उत्तर - हे गौतम! ये पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस और चार स्पर्श कहे हैं ।
विवेचन - प्राणातिपात-जीव हिंसा से उत्पन्न होने वाला कर्म अथवा जीव हिंसा को उत्पन्न करनेवाला चारित्र मोहनीय कर्म भी उपचार से प्राणातिपात कहलाता है । क्रोध, लोभ, भय और हास्य के वश असत्य, अप्रिय अहितकारी वचन कहना 'मृषावाद' है । स्वामी की आज्ञा के बिना कुछ भी लेना 'अदत्तादान' है । विषय वासना से प्रेरित स्त्री-पुरुष के संयोग को 'मैथुन' कहते हैं। धन कञ्चनादि बाह्य परिग्रह है और मूर्च्छा ममत्व होना - भाव परिग्रह है । ये पांचों पाप, पुद्गल रूप होने से इनमें पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस और चार (स्निग्ध, रुक्ष, शीत और उष्ण) स्पर्श होते हैं । इसी प्रकार क्रोध और मान में भी होते | यहाँ क्रोध के दस पर्यायवाची शब्द कहे गये हैं। क्रोध के परिणाम को उत्पन्न करनेवाले कर्म को 'क्रोध' 'कहते हैं । इन दस नामों में 'क्रोध' यह सामान्य नाम है और कोपादि उसके विशेष नाम हैं । १ क्रोध, २ कोप- क्रोध के उदय से अपने स्वभाव से चलित होना 'कोप' कहलाता है, ३ रोष - क्रोध की परम्परा, ४ दोष - अपने आपको तथा दूसरे को दूषण देना, अथवा द्वेष - अप्रीति, ५ अक्षमा- दूसरे के द्वारा किये हुए अपराध को सहन नहीं करना, ६ संज्वलनबार-बार क्रोध से प्रज्वलित होना, ७ कलह - वाग्युद्ध अर्थात् परस्पर अनुचित शब्द बोलना, ८ वाण्डिक्य- रौद्र रूप धारण करना, ९ भण्डन - दण्ड, शस्त्र आदि से युद्ध करना और १० विवाद - परस्पर विरुद्ध वचन बोल कर विवाद करना -झगड़ा करना । यह इन शब्दों का शब्दार्थ है, अन्यथा ये सभी शब्द क्रोध के एकार्थक हैं ।
मान-अपने आपको दूसरों से उत्कृष्ट समझना 'मान' कहलाता है। इसके सार्थक बारह नाम हैं-१ मान-अभिमान के परिणाम को उत्पन्न करने वाले कषाय को 'मान' कहते
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