________________
२०४४
भगवती सूत्र--श. १२ उ. ४ पुद्गल परिवर्तन के भेद
३० उत्तर-हे गौतम ! सब से थोड़ा कार्मण-पुद्गल परिवर्तन निष्पत्तिकाल है, उससे तैजस पृद्गल परिवर्तन निष्पत्तिकाल अनन्त गुण है, उससे औदारिक पुद्गल परिवर्तन निष्पत्तिकाल अनन्त गुण है, उससे आनप्राण पुदगल परिवर्तन निष्पत्तिकाल अनन्त गुण है, उससे मनःपुद्गलपरिवर्तन निष्पत्तिकाल अनन्त गुण है, उससे वचनपुद्गलपरिवर्तन निष्पत्तिकाल अनन्त गुण है और उससे वैक्रिय पुद्गल परिवर्तन निष्पत्तिकाल अनन्त गुण है।
३१ प्रश्न-हे भगवन् ! औदारिक पुद्गल परिवर्तन यावत् आनप्राण पुद्गल परिवर्तन, इनमें कौन पुद्गल परिवर्तन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक है ?
३१ उत्तर-हे गौतम ! सबसे थोड़ा वैक्रिय पुद्गल परिवर्तन है । उससे वचन पुद्गल परिवर्तन अनन्त गुण है, उससे मनःपुद्गल परिवर्तन अनन्त गुण है, उससे आनप्राग पुदाल परिवर्तन अनन्त गुण है, उससे औदारिक पुद्गल परिवर्तन अनन्त गुण है, उससे तैजस पुद्गल परिवर्तन अनन्त गुण है और उससे कार्मग पुद्गल परिवर्तन अनन्त गुण है ।
. हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। ऐसा कह कर गौतम स्वामी यावत् विवरते हैं।
विवेचन-औदारिक पुद्गल परिवर्तन आदि अनन्त उत्सपिणी अवसर्पिणी काल में निष्पन्न होते हैं । क्योंकि पुद्गल अनन्त हैं और उनका ग्राहक एक जीव होता है । तथा पुद्गल परिवर्तन में पूर्व गृहीत पुद्गलों की गणना नहीं की जाती।
इन पुद्गल परिवर्तनों के निष्पत्ति काल का अल्प-बहुत्व बतलाते हुए कहा गया है कि कार्मण पुद्गल परिवर्तन निष्पत्तिकाल (निर्वर्तनाकाल) सब से थोड़ा है। क्योंकि कार्मण पुद्गल सूक्ष्म हैं और वहुत-से परमाणुओं से निष्पन्न होता है, इसलिये वे एक ही वार में बहुत से ग्रहण किये जाते हैं तथा नैरयिकादि सभी अवस्था में रहा हुआ जीव, प्रति समय उनको ग्रहण करता है, इसलिये स्वल्पकाल में ही उन सभी पुद्गलों का ग्रहण हो जाता है । उससे तेजस पुद्गल परिवर्तन निष्पत्तिकाल अनन्त गुण है, क्योंकि तेजस् पुद्गल स्थूल है, अतः उनमें एक वार में अल्प पुद्गल का ग्रहण होता है । अल्प प्रदेशों से निष्पन्न होने के कारण एक बार में भी उन अल्प अणुओं का ही ग्रहण होता है, इसलिये
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org