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भगवती सूत्र - श. १२ उ. ४ पुद्गल परिवर्तन के भेद
तेजस और कार्मण शरीर सभी संसारी जीवों में होते हैं, इसलिये सभी नारकादि जीवों में तैजस् कार्मण पुद्गल परिवर्तन भविष्यत्काल सम्बन्धी एकोत्तरिक कहने चाहिये । विकलेन्द्रियों में मनःपुद्गल परिवर्तन नहीं होता । 'विकलेन्द्रिय' शब्द यद्यपि बेइंद्रिय तेइंद्रिय और चौइंद्रिय जीवों के लिए रूढ है, तथापि यहाँ 'विकलेन्द्रिय' शब्द से एकेन्द्रिय जीवों का भी ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि उनमें भी इन्द्रियों की परिपूर्णता नहीं है और मन का अभाव है । अतः उनमें मनपुद्गल परिवर्तन नहीं है ।
वचन पुद्गल परिवर्तन नारकादि जीवों में हैं, केवल एकेन्द्रिय जीवों में नहीं है । औदारिक पुद्गल परिवर्तन का अर्थ बतलाते हुए मूल पाठ में 'गहियाई बढ़ाई' आदि तेरह पद दिये हैं जिनका अर्थ भावार्थ में कर दिया गया है। इनमें से पहले के चार पंद औदारिक पुद्गलों को ग्रहण करने विषयक हैं। उनसे आगे के 'पट्टवियाई' आदि पाँच पद स्थिति विषयक हैं। उनसे आगे के 'परिणामियाई' आदि चार पद औदारिक पुद्गलों को आत्म-प्रदेशों से पृथक् करने विषयक हैं ।
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२९ प्रश्न - ओरालियपोग्गलपरियट्टे णं भंते ! केवइकालस्स णिव्वत्तिज्जह १
२९ उत्तर - गोयमा ! अनंताहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं एवइकालस्स णिव्वित्तिज्जइ एवं वेउब्वियपोग्गलपरियट्टे वि, एवं जाव आणापाणुपोग्गलपरियद्रे वि ।
३० प्रश्न - एयस्स णं भंते ! ओरालियपोग्गलपरियट्टणिव्वत्तणाकालस्स, वेउब्वियपोग्गल० जाव आणापाणुपोग्गलपरियट्टणिव्वत्तणाकालस्स करे करेहिंतो जाव विसेसाहिया वा ?
३० उत्तर - गोयमा । सव्वत्थोवे कम्मगपोग्गल परियट्टणिव्वचणाकाले, तेयापोग्गलपरियदृणिव्वत्तणाकाले अनंतगुणे, ओरा
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