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भगवती सूत्र-श. १२ उ. ४ पुदगल परिवर्तन के भेद
बद्धाइं, पुट्ठाई, कडाई, पट्टवियाई, णिविट्ठाई, अभिणिविट्ठाई, अभि. समण्णागयाई, परियाइयाई, परिणामियाई, णिजिणाई, णिसि. रियाई, णिसिट्ठाइं भवंति; से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-'ओरा. लियपोग्गलपरियट्टे ओरालियपोग्गलपरियट्टे ।' एवं वेउब्वियपोग्गलपरियट्टे वि, णवरं वेउब्वियसरीरे वट्टमाणेणं वेउवियसरीरप्पा. योग्गाई, सेसं तं चेव सव्वं, एवं जाव आणापाणुपोग्गलपरियट्टे, गवरं आणापाणुपायोग्गाइं सव्वदव्वाइं आणापाणुत्ताए, सेसं तं चेव ?
भावार्थ-२६ प्रश्न-हे भगवन् ! नैरयिक जीवों के नरयिकभव में कितने औदारिक पुद्गल परिवर्तन हुए हैं ?
२६ उत्तर-हे गौतम ! एक भी नहीं हुआ। (प्रश्न)हे भगवन् ! आगे कितने होंगे? (उत्तर) हे गौतम ! एक भी नहीं होगा। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारपने तक कहना चाहिये।
२७ प्रश्न-हे भगवन् ! नैरयिक जीवों के पृथ्वीकायपने में औदारिक पुद्गल परिवर्तन कितने हुए हैं ?
. २७ उत्तर-हे गौतम ! अनन्त हुए हैं । (प्रश्न) हे भगवन् ! आगे कितने होंगे ? (उत्तर)हे गौतम ! अनन्त होंगे। इसी प्रकार यावत् मनुष्यभव तक कहना चाहिए। जिस प्रकार नैरयिकभव में कहे हैं, उसी प्रकार वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिकभव में कहना चाहिए । इसी प्रकार यावत् वैमानिकों के वैमानिकभव तक सातों ही पुद्गल परिवर्तन कहना चाहिए। जहां जो पुद्गल परिवर्तन हों, वहाँ अतीत (बीते हुए) और पुरस्कृत (भविष्यकालीन) अनन्त कहना चाहिए और जहां नहीं हों, वहाँ अतीत और पुरस्कृत दोनों में नहीं कहना चाहिए । यावत् (प्रश्न) हे भगवन् ! वैमानिकों के वैमानिकभव में कितने आनप्राणपुद्गल परिवर्तन हुए हैं ? (उत्तर) हे गौतम ! अनन्त हए हैं।
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