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२०३८
भगवती सूत्र - श. १२ उ. ४ पुद्गल परिवर्तन के भेद
कठिन शब्दार्थ - एकोत्तरिया - एक से लेकर अनन्त तक ।
भावार्थ - २३ प्रश्न - हे भगवन् ! प्रत्येक असुरकुमार के नरयिक भव में औदारिक पुद्गल परिवर्तन कितने हुए हैं ?
२३ उत्तर - हे गौतम ! जिस प्रकार नैरयिकों का कथन किया है, उसी प्रकार असुरकुमार के विषय में यावत् वैमानिक भव पर्यंत कहना चाहिये । इसी प्रकार यावत् स्तनित कुमारों तक कहना चाहिये और इसी प्रकार पृथ्वीकाय से लेकर यावत् वैमानिक पर्यन्त एक समान कहना चाहिए ।
२४ प्रश्न - हे भगवन् ! प्रत्येक नैरयिक जीव के, नैरयिक भव में वैक्रिय पुद्गल परिवर्तन कितने हुए है ?
२४ उत्तर - हे गौतम! अनन्त हुए हैं । ( प्रश्न ) हे भगवन् ! भविष्य में कितने होंगे ? (उत्तर) हे गौतम! होंगे या नहीं, यदि होंगे तो एक से लेकर यावत् अनन्त होंगे । इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारभव तक कहना चाहिए । २५ प्रश्न - हे भगवन् ! प्रत्येक नैरयिक जीव के पुदगल परिवर्तन कितने हुए हैं ?
पृथ्वीकायिक भव में
वैक्रिय
२५ उत्तर - हे गौतम ! एक भी नहीं हुआ । ( प्रश्न) हे भगवन् ! आगे कितने होंगे ? (उत्तर) हे गौतम! एक भी नहीं होगा। इस प्रकार जहाँ वैक्रिय शरीर है, वहाँ एकादि पुद्गल परिवर्तन जानना चाहिये और जहाँ वैक्रिय शरीर नहीं है, वहाँ पृथ्वीकायिकपने में कहा, उसी प्रकार कहना चाहिए, यावत् वैमानिक जीवों के वैमानिकभव पर्यन्त कहना चाहिए। तैजस पुद्गल परिवर्तन और कार्मण पुद्गल परिवर्तन सर्वत्र एक से लगाकर अनन्त तक कहना चाहिए । मन पुद्गल परिवर्तन सभी पञ्चेन्द्रिय जीवों में एक से लेकर अनन्त तक कहना चाहिए, किंतु विकलेन्द्रियों (एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय) में मनःपुद्गल परिवर्तन नहीं होता । इस प्रकार वचन पुद्गल परिवर्तन का भी कहना चाहिये, किंतु विशेषता यह है कि वह एकेन्द्रिय जीवों में नहीं होता ।
आन
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