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भगवती सूत्र - श. १२. उ. ४ पुद्गल परिवर्तन के भेद
होंगे और इसी प्रकार यावत् मनुष्य भव तक में कहना चाहिए। जिस प्रकार असुरकुमार के विषय में कहा, उसी प्रकार वागव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक के विषय में भी कहना चाहिए ।
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विवेचन - परमाणु पुद्गलों के संयोग और वियोग ( विभाग) से अनन्तानन्त ( अनन्त .को अनन्त से गुणा करने पर जितने होते हैं, वे अनन्तानन्त कहलाते हैं ) परिवर्तन होते हैं । एक परमाणु द्व्यणुकादि द्रव्यों के साथ संयुक्त होने पर अनन्त परिवर्तनों को प्राप्त करता है, क्योंकि परमाणु अनन्त हैं और प्रति परमाणु उसका परिवर्तन हो जाता है । इस प्रकार परमाणु पुद्गल परिवर्तन अनन्तानन्त हो जाते हैं ।
पुद्गल परिवर्तन के औदारिक पुद्गल परिवर्तन आदि सात भेद ऊपर बतलाये गये हैं । औदारिक शरीर में रहता हुआ जीव, जब लोक के सभी पुद्गलों को औदारिक शरीर के रूप में ग्रहण कर लेता हैं, तब उसे आंदारिक पुद्गल परिवर्तन कहते हैं । इसी प्रकार वैक्रिय पुद्गल परिवर्तन आदि का भी अर्थ समझना चाहिये ।
अनादिकाल से संसार में परिभ्रमण करते हुए नैरयिक जीवों के सात प्रकार को पुद्गल परिवर्तन कहे गये हैं। प्रत्येक नैरयिक जीव के औदारिक पुद्गल परिवर्तन आदि अतीत काल सम्बन्धी अनन्त हैं। क्योंकि अतीत फाल अनादि है और जीव भी अनादि है । तथा पुद्गलों को ग्रहण करने का उसका स्वभाव है ।
अभव्य जीव के औदारिकादि पुद्गल परिवर्तन होते ही रहेंगे, जो नरकादि गति से निकल कर मनुष्य भव को प्राप्त करके सिद्धि को प्राप्त कर लेगा, या जो संख्यात और असंख्यात भवों से भी सिद्धि को प्राप्त करेगा, उसके पुद्गल परिवर्तन नहीं होगा। जिसका संसार परिभ्रमण अधिक होगा, वह एक या अनेक पुद्गल परिवर्तन करेगा। एक पुद्गल परिवर्तन भी अनन्त काल में पूरा होता है ।
एकवचन सम्बन्धी औदारिकादि सात प्रकार के पुद्गल परिवर्तन होने से, सात दण्डक (विकल्प) होते हैं। ये सात दण्डक नैरयिकादि चौवीस दण्डकों में कहना चाहिये और इसी प्रकार बहुवचन से भी कहना चाहिये । एकवचन और बहुवचन सम्बन्धी दण्डकों में अन्तर यह है कि एकवचन सम्बन्धी दण्डकों में भविष्यत्कालीन पुद्गल परिवर्तन किसी जीव के होते हैं और किसी जीव के नहीं होते । बहुवचन संबंधी दण्डकों में तो होते ही हैं, क्योंकि उसमें जीव सामान्य का ग्रहण है !
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