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________________ २०३२ भगवती मूत्र--ग. १२ उ. गुद्गल परिवर्तन के मेव आणापाणुपोग्गलपरियट्टे, एवं जाव वेमाणियाणं । __ १६ प्रश्न-एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स केवइया ओरालियपोग्गलपरियट्टा अतीता ? १६ उत्तर-अणंता, (प्र०) केवइया पुरेक्खडा ? (उ०) करसइ अस्थि, कस्सइ णत्थि; जस्सत्थि जहण्णेणं एकको वा दो वा तिष्णि वा, उक्कोसेणं संखेजा वा असंखजा वा अणंता वा। १७ प्रश्न-एगमेगस्स .णं भंते ! असुरकुमारस्म केवड्या ओरालियपोग्गल० ? १७ उत्तर-एवं चेव, एवं जाव वेमाणियस्म । कठिन शब्दार्थ-साहणणा-संघातसंयोग. पुरेक्खडा-पुरस्कृत-अनागत-भविष्यत्काल । भावार्थ-१३ प्रश्न-हे भगवन ! क्या परमाणु पुद्गलों के संयोग और विभाग से होने वाले अनन्तानन्त पुद्गल परिवर्तन जानने योग्य हैं ? १३ उत्तर-हाँ, गौतम ! संयोग और विभाग से होने वाले परमाणु पुद्गलों के अनन्तानन्त पुद्गल परिवर्तन जानने योग्य है। १४ प्रश्न-हे भगवन् ! पुद्गल परिवर्तन कितने प्रकार का कहा गया है ? १४ उत्तर-हे गौतम ! सात प्रकार का कहा गया है । यथा-१ औदारिक पुद्गल परिवर्तन, २ वैक्रिय पुद्गल परिवर्तन, ३ तेजस पुद्गल परिवर्तन, ४ कार्मण पुद्गल परिवर्तन, ५ मनः पुद्गल परिवर्तन, ६ वचन पुद्गल परिवर्तन और ७ आनप्राण पुद्गल परिवर्तन । १५ प्रश्न-हे भगवन् ! नरयिक जीवों के कितने प्रकार के पुद्गल परिवर्तन कहे गये हैं ? १५ उत्तर-हे गौतम ! सात पुद्गल परिवर्तन कहे गये हैं । यथा-औदा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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