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________________ १६०२ भगवती सूत्र-श. ९ उ. ३१ असोच्चा-लेश्या ज्ञान योगादि और एक प्रश्न के उत्तर के सिवाय धर्म का उपदेश नहीं करते। २९ प्रश्न-हे भगवन् ! वे असोच्चाकेवलो किसी को प्रवजित करते हैं, मुण्डित करते हैं ? २९ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं, किन्तु (अमुक के पास तुम प्रवज्या ग्रहण करो-) ऐसा उपदेश करते (कहते) हैं। ३० प्रश्न-हे भगवन् ! वे असोच्चाकवली सिद्ध होते हैं यावत् समस्त दुःखों का अन्त करते हैं ? ३० उत्तर-हाँ, गौतम ! वे सिद्ध होते हैं, यावत् समस्त दुःखों का अंत करते हैं। ३१ प्रश्न-से णं भंते ! किं उड्ढं होजा, अहे 'होजा, तिरियं होज्जा ? ३१ उत्तर-गोयमा ! उड्ढे वा होज्जा, अहे वा होज्जा, तिरियं वा होजा; उड्ढे होज्जमाणे सद्दावइ-वियडावइ-गंधावइ-मालवंतपरियाएसु वट्टवेयड्ढपव्वएसु होज्जा; साहरणं पडुच्च सोमणसवणे वा पंडगवणे वा होज्जा; अहे होज्जमाणे गड्डाए वा, दरीए वा होजा; साहरणं पडुच्च पायाले वा, भवणे वा होज्जा: तिरियं होजमाणे पण्णरससु कम्मभूमीसु होज्जा; साहरणं पडुच्च अढाइज्जदीवसमुद्द-तदेक्कदेसभाए होज्जा। ३२ प्रश्न ते णं भंते ! एगसमए णं केवइया होज्जा ? ३२ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वाः Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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