________________
भगवती सूत्र--. १२ उ. ३ सात पृथ्वियाँ
पण्णत्ताओ ?
१ उत्तर - गोयमा ! सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओ, तं जहा- पढमा,
१९९९
दोच्चा, जाव सत्तमा |2
२ प्रश्न - पढमा णं भंते! पुढवी किंणामा किंगोत्ता पण्णत्ता ? २ उत्तर - गोयमा ! घम्मा णामेणं, रयणप्पभा गोत्तेणं, एवं जहा जीवाभिगमे पढमो रइय उद्देसओ सो चेव णिरवसेसो भाणि - यव्वो, जाव अप्पावहुगं ति ।
* सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति
॥ तइओ उद्देस समत्तो ॥
भावार्थ - १ प्रश्न - राजगृह नगर में यावत् गौतम स्वामी ने इस प्रकार पूछा - "हे भगवन् ! पृथ्वियाँ कितनी कही गई हैं ? "
द्वितीया
१ उत्तर - हे गौतम ! पृथ्वियां सात कही गई हैं। यथा- प्रथमा, यावत् सप्तमी ।
२ प्रश्न - हे भगवन् ! प्रथम पृथ्वी का क्या नाम और गौत्र है ? २ उत्तर - हे गौतम ! प्रथम पृथ्वी का नाम 'धम्मा' है और गोत्र रत्नप्रभा है । इस प्रकार जीवाभिगम सूत्र की तीसरी प्रतिपत्ति के प्रथम नैरयिक उद्देशक में कहे अनुसार यावत् अल्पबहुत्व तक जानना चाहिए ।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है - ऐसा कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं ।
Jain Education International
विवेचन-अपनी इच्छानुसार किसी पदार्थ का जो कुछ नाम रखना 'नाम' कहलाता है और उसके अर्थ के अनुकूल नाम रखना 'गोत्र' कहलाता है । तात्पर्य यह है कि सार्थक और निरर्थक जो कुछ नाम रखा जाता है, उसे 'नाम' कहते हैं । सार्थक एवं तदनु
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org