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________________ भगवती सूत्र - ग. १२ उ. ३ सात पृथ्वियां (सेवा) करने वाले होते हैं । इसलिए इन जीवों की दक्षता अच्छी है । इस कारण हे जयन्ती ! ऐसा कहा जाता है कि कुछ जीवों की दक्षता और कुछ जीवों का आलसीपन अच्छा है । १९६८ १० प्रश्न - हे भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय के वश आतं (पीड़ित ) बना हुआ जीव, क्या बाँधता है, इत्यादि प्रश्न । १० उत्तर - हे जयन्ती ! जिस प्रकार क्रोध के वश आर्त्त बने हुए जीव के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार यहाँ भी जानना चाहिए, यावत् वह संसार में परिभ्रमण करता है । इसी प्रकार चक्षुइन्द्रिय यावत् स्पर्शनेन्द्रिय के वश आतं बने हुए जीव के विषय में भी कहना चाहिए, यावत् संसार में परिभ्रमण करता है । ११ - इसके पश्चात् जयन्ती श्रमणोपासका श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से उपरोक्त अर्थों को सुनकर और हृदय में धारण करके हर्षित एवं सन्तुष्ट हुई, इत्यादि सब वर्णन नौवें शतक के तेतीसवें उद्देशक में कथित देवानन्दा के वर्णन के समान कहना चाहिए, यावत् जयन्ती ने प्रव्रज्या ग्रहण की और सभी दुःखों से मुक्त हुई । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैऐसा कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं । ॥ बारहवें शतक का द्वितीय उद्देशक सम्पूर्ण || शतक १२ उद्देशक ३ सात पृथ्वियाँ १ प्रश्न - रायगिहे जाव एवं वयासी - क णं भंते ! पुढवीओ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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