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भगवती सूत्र-स. १२ उ. २ जयन्ती श्रमणोपासिका के प्रश्न
१९९३
सत्ताणं अदुक्खणयाए, जाव अपरियावणयाए वटुंति, तेणं जीवा जागरमाणा अप्पाणं वा परं वा तदुभयं वा बहूहिं धम्मियाहिं संजोयणाहिं संजोएत्तारो भवति । एए णं जीवा जागरमाणा धम्मजागरियाए अप्पाणं जागरइत्तारो भवंति, एएसि णं जीवाणं जाग. रियत्तं साहू: से तेणटेणं जयंती ! एवं वुचइ-'अत्थेगइयाणं जीवाणं मुत्तत्तं साहू, अत्थेगइयाणं जीवाणं जागरियत्तं साहू'।
भावार्थ-७ प्रश्न-हे भगवन् ! जीवों का सुप्त रहना अच्छा है या जाग्रत रहना ?
__७ उत्तर-है जयन्ती ! कुछ जीवों का सुप्त रहना अच्छा है और कुछ जीवों का जाग्रत रहना अच्छा है ।
प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ? ... उत्तर-हे जयन्ती ! जो ये अधामिक, अधर्म का अनुसरण करने वाले, अधर्मप्रिय, अधर्म का कथन करनेवाले, अधर्म का अवलोकन करनेवाले, अधर्म में आसक्त, अधर्माचरण करनेवाले और अधर्म से ही अपनी आजीविका करने वाले हैं, उन जीवों का सुप्त रहना अच्छा है। क्योंकि वे जीव सुप्त हों तो अनेक प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों के दुःख, शोक और परिताप आदि के कारण नहीं बनते तथा अपने को, दूसरों को और स्वपर को अनेक अधार्मिक संयो. जनाओं (प्रपञ्चों) में नहीं फंसाते । अतः ऐसे जीवों का सुप्त रहना अच्छा है।
. जो जीव धार्मिक, धर्मानुसारी, धर्मप्रिय, धर्म का कथन करनेवाले, धर्म का अवलोकन करनेवाले, धर्मासक्त, धर्माचरण करनेवाले और धर्मपूर्वक आजीविका चलानेवाले हैं, उन जीवों का जाग्रत रहना अच्छा है। क्योंकि वे जाग्रत हों, तो अनेक प्राण, भूत जीव और सत्त्वों के दुःख, शोक और परिताप आदि के कारण नहीं बनते तथा अपने आप को, दूसरों को और स्वपर को
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