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भगवती सूत्र - ग. १२ उ. २ जयंती श्रमणोपासका के प्रश्न
है और एक प्रदेशी होने से दोनों ओर से परिमित तथा अन्य श्रेणियों द्वारा परिवृत है, उसमें से प्रत्येक समय में एक एक परमाणु पुद्गल जितना खण्ड निकालते हुए, अनन्त उत्सर्पिणी और अनन्त अवसर्पिणी तक निकाला जाय, तो भी वह श्रेणी खाली नहीं होती । इसी प्रकार हे जयन्ती ! ऐसा कहा जाता है कि सब भवसिद्धिक जीव सिद्ध होंगे, परन्तु लोक भवसिद्धिक जीवों से रहित नहीं होगा ।
७ प्रश्न - सुत्तत्तं भंते! साहू, जागरियत्तं साहू ?
७ उत्तर - जयंती ! अत्थेगइयाणं जीवाणं सुत्तत्तं साहू, अत्थे गइयाणं जीवाणं जागरियत्तं साहू |
प्रश्न - से केणटुणं भंते ! एवं बुचड़ - 'अत्थेगइयाणं जाव साहू ?' उत्तर - जयंती ! जे इमे जीवा अहम्मिया अहम्माणुया अहम्मिट्ठा अहम्मखाई अहम्मपलोई अहम्मपलज्जणा अहम्मसमुदायारा अहम्मेणं चैव वित्तिं कप्पेमाणा विहरति, एएसिं णं जीवाणं सुत्तत्तं साहू । एए णं जीवा सुत्ता समाणा णो बहूणं पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं दुक्खणयाए सोयणयाए जाव परियावणयाए वज्रंति, एए णं जीवा सुत्ता समाणा अप्पाणं वा परं वा तदुभयं वा णो बहूहिं अहम्मियाहिं संजोयणाहिं संजोएत्तारो भ वंति, एएसिं णं जीवाण सुत्तत्तं साहू | जयंती ! जे इमे जीवा धम्मिया धम्माणुया जाव धम्मेण चैव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति, एएसिं णं जीवाणं जागरियतं साहू । एए णं जीवा जागरा समाणा बहूणं पाणाणं जाव
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