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________________ . भगवता पू भगवती मूत्र-श. १२ उ. २ जयन्ती श्रमणोपासिका के प्रश्न १९९१ खंडेहिं समए समए अवहीरमाणी अवहीरमाणी अणंताहिं ओस. प्पिणी अवसप्पिणीहिं अवहीरंति, णो चेव णं अवहिया सिया, से तेणटेणं. जयंती ! एवं वुच्चइ-'सब्बे वि णं भवसिद्धिया जीवा सिन्झिस्संति, णो चेव णं भवसिद्धियविरहिए लोए भविस्सइ । कठिन शब्दार्थ-अणवदग्गा-अनन्त, परित्ता-परिमित, परिवुडा-परिवृत-घिरी हुई। भावार्थ-३ प्रश्न-जयन्ती श्रमणोपासिका श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से धर्मोपदेश सुनकर एवं अवधारण करके हर्षित और सन्तुष्ट हुई और भगवान् को वन्दना-नमस्कार कर, इस प्रकार पूछा-“हे भगवन् ! जीव किस कारण से गुरुत्व-भारीपन को प्राप्त होते हैं ?" ____३ उत्तर-"हे जयन्ती ! जीव प्रागातिपात आदि अठारह पापस्थानों का सेवन करके गुरुत्व को प्राप्त होते हैं और इनसे निवृत्त होकर जीव हलका होता है। इस प्रकार प्रथम शतक के नौवें उद्देशक में कहे अनुसार जानना चाहिए यावत् वे संसार समुद्र से पार हो जाते हैं।" __ ४ प्रश्न-हे भगवन् ! जीवों का भवसिद्धिकपन स्वाभाविक है या पारि-.. णामिक ? ४ उत्तर-हे जयन्ती ! स्वाभाविक है, पारिणामिक नहीं। ५ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या सभी भवसिद्धिक जीव सिद्ध होंगे? ५ उत्तर-हाँ, जयन्ती ! सभी भवसिद्धिक जीव सिद्ध होंगे। ६ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि सभी भवसिद्धिक जीव सिद्ध हो जायेंगे, तो लोक भवसिद्धिक जीवों से रहित हो जायगा ? ६ उत्तर-हे जयन्ती ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्रश्न-हे भगवन् ! क्या कारण है कि सभी भवसिद्धिक जीवों के सिद्ध होने पर भी लोक, भवसिद्धिक जीवों से रहित नहीं होगा ? उत्तर-हे जयन्ती ! जिस प्रकार सर्वाकाश की श्रेणी जो अनादि अनन्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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