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१९८८
भगवनी सूत्र-ग. १२ उ. २ जयंती श्रमणोपामिका
जुत्तामेव उवट्ठवेह' जाव उवठ्ठवेंति, जाव पञ्चप्पिणंति । तएणं सा मियाई देवी जयंतीए समणोवासियाए सदिध व्हाया कयबलिकम्मा जाव सरीरा बहूहिं खुज्जाहिं जाव अंतेउराओ णिग्गच्छइ, अं० जेणेव वाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे तेणेव उवागच्छइ, ते० जाव दुरूढा । तएणं सा मियावई देवी जयंतीए समणोवासियाए सदिध धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढा समाणी णियगपरियाल० जहा उसभदत्तो जाव धम्मियाओ जाणप्पवराओ पञ्चो. रुहइ। तएणं सा मियाई देवी जयंतीए ममणोवासियाए सद्धि बहहिं खुज्जाहिं जहा देवाणंदा जाव वंदइ णमंसह वं०२,उदायणं रायं पुरओ कटु ठिझ्या चेव जाव पज्जुवासइ । तएणं समणे भगवं महावीरे उदायणस्स रण्णो मियावईए देवीए जयंतीए समणोवासियाए तीसे य महतिमहा० जाव धम्म परिकहेइ, जाव परिसा पडिगया, उदायणे पडिगए, मियावई देवी वि पडिगया। .
भावार्थ-२-उस काल उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वहां पधारे यावत् परिषद् पर्युपासना करने लगी। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के आगमन की बात सुनकर उदायन राजा हर्षित और सन्तुष्ट हुआ। कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर उसने इस प्रकार कहा-'हे देवानुप्रियो ! कौशाम्बी नगरी को अन्दर और बाहर साफ करवाओ, इत्यादि कोणिक राजा के समान जानना चाहिए, यावत् वह पर्युपासना करने लगा। भगवान् के आगमन की बात सुनकर जयन्ती श्रमणोपासिका हर्षित एवं सन्तुष्ट हुई और मृगावती देवी के पास आकर बोली-“हे देवानुप्रिये ! श्रमण भगवान महावीर यहाँ कौशाम्बी
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