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________________ भगवती सूत्र---. १२ ७. २ जयन्ती श्रमणोपासका के प्रश्न नगरी के चन्द्रावतरण उद्यान में पधारे हैं । उनका नाम, गौत्र सुनने से भी महाफल होता है, तो दर्शन और वन्दन का तो कहना ही क्या ? उनका एक भी धर्म-वचन सुनने मात्र से महाफल मिलता है, तो तत्त्व-ज्ञान संबंधी विपुल अर्थ सीखने के महाफल का तो कहना ही क्या है ? अतः अपन चले और वन्दननमस्कार करें । यह कार्य हमारे लिए इस भव, परभव और दोनों भवों के लिए कल्याणप्रद और श्रेयस्कर होगा । जिस प्रकार देवानन्दा ने ऋषभदत्त के वचन को स्वीकार किया था, उसी प्रकार मृगावती ने भी जयन्ती श्राविका के वचन स्वीकार किये । फिर सेवक पुरुषों को बुलाकर वेगवान् यावत् धार्मिक श्रेष्ठ रथ जोड़ कर लाने की आज्ञा दी। सेवक पुरुषों ने आज्ञा का पालन किया और रथ लाकर उपस्थित किया । मृगावती देवी और जयन्ती श्राविका ने स्नानादि करके शरीर को अलंकृत किया। फिर बहुत-सी कुब्जा दासियों के साथ अन्तःपुर से बाहर निकली और फिर बाहरी उपस्थानशाला में आई और रथारूढ़ होकर उद्यान में पहुंची। रथ से नीचे उतर कर देवानन्दा के समान वन्दना नमस्कार कर, उदायन राजा को आगे करके चली और उसके पीछे ठहर कर पर्युपासना करने लगी । श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने उदायन राजा, मृगावती देवी, जयन्ती श्रमणोपासका और उस महा परिषद् को धर्मोपदेश दिया यावत् परिषद् लौट गई । उदायन राजा और मृगावती भी चले गये । विवेचन-जयन्ती श्रमणोपासिका साधुओं को स्थान देने में प्रसिद्ध थी। इसलिए जो साधु प्रथम बार कोशांबी में आते थे, वे उसी से वसति ( ठहरने का स्थान ) की याचना करते थे । इसलिए वह 'पूर्वशय्यातर' के नाम से प्रसिद्ध थी । जयन्ती श्रमणोपासिका के प्रश्न ३- तपणं सा जयंती समणोवासिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोच्चा णिसम्म हट्ट तुट्टा समणं भगवं महा Jain Education International १९८९ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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