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भगवती सूत्र-श. १२ उ. २ जयंती श्रमणोपासिका
१९८७
आत्मज, जयन्ती श्रमणोपासिका का भतीज, उदायन नामक राजा था, वर्णन । उसी नगरी में सहस्रानीक राजा की पुत्रवधू, शतानीक राजा की पत्नी, चेटक राजा की पुत्री, उदायन राजा की माता और जयन्ती श्रमणोपासिका की भोजाई मृगावती देवी थी। वह सुकुमाल हाथ-पांव वाली थी, इत्यादि वर्णन जानना चाहिए यावत् सुरूप थी और श्रमणोपासिका थी। उसी नगरी में जयंती नाम की श्रमणोपासिका थी। वह सहस्रानीक राजा की पुत्री, शतानीक राजा की बहिन, उदायन राजा की भूआ, मृगावतीदेवी की ननन्द और श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के साधुओं की प्रथम शय्यातर थी। वह सुकुमाल यावत् सुरूप और जीवाजीव आदि तत्त्वों की जानकार, यावत् विचरती थी।
२-तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे, जाव परिसा पज्जुवासइ । तएणं से उदायणे राया इमीसे कहाए लद्धटे समाणे ह-तुढे कोडंवियपुरिसे सदावेइ, को० एवं वयासी-'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! कोसंवि णयरिं सम्भितर-बाहिरियं० एवं जहा कूणिओ तहेव सव्वं जाव पज्जुवासइ । तएणं सा जयंती समणोवासिया इमीसे कहाए लट्ठा समाणी हट्ट-तुट्ठा जेणेव मियावई देवी तेणेव उवागच्छइ, ते० मियावई देविं एवं वयासी-एवं जहा णवमसए उसमदत्तो जाव भविस्सइ । तएणं सा मियावई देवी जयंतीए समणोवासियाए जहा देवाणंदा जाव पडिसुणेइ । तएणं सा मियावई देवी कोडंबियपुरिसे सद्दावेई, को० एवं वयासी-'खिप्पामेव भो. देवाणुप्पिया ! लहुकरण-जुत्तजोइय० जाव धम्मियं जाणप्पवरं
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