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भगवती सूत्र - श. १२ ३. १ श्रमणोपामक शंख पुष्कली
माया और लोभ के वश आर्त बने हुए जीव के विषय में भी जानना चाहिए, यावत् वह संसार में परिभ्रमण करता है।
१४-श्रमण भगवान महावीर स्वामी से क्रोधादि कषाय का ऐसा तीव्र और कटु फल सुन कर और अवधारण कर के कर्म-बन्ध से भयभीत हुए वे श्रावक त्रास पाये, त्रसित हुए और संसार के भय से उद्विग्न बने हुए वे भगवान् को वन्दना नमस्कार करके शंख श्रावक के समीप आये। उन्हें वन्दना नमस्कार करके अपने अविनयरूप अपराध के लिये विनयपूर्वक बार-बार क्षमायाचना करने लगे। इसके पश्चात् वे सभी श्रावक यावत् अपने-अपने घर गये । शेष वर्णन आलभिका के श्रमणोपासकों के समान जानना चाहिये।
१५ प्रश्न-'हे भगवन् !' ऐसा कहकर भगवान् गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दना नमस्कार कर इस प्रकार पूछा-'हे भगवन् ! क्या शंख श्रमणोपासक आपके पास प्रव्रज्या लेने में समर्थ है ?'
१५ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । शेष वर्णन ऋषिभद्रपुत्र के समान कहना चाहिये, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करेगा। - हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-ऐसा कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
विवेचन-पुष्कली आदि श्रावकों को जो थोड़ा-सा क्रोध उत्पन्न हो गया था, उसको उपशमाने की दृष्टि से शंख श्रावक ने क्रोधादि कषाय का फल पूछा और भगवान ने क्रोधादि कषाय का कटु-फल बतलाया, जिसे सुनकर वे श्रावक शांत हो गये और अपने अपराध के लिये शंख श्रावक से क्षमा याचना की । शंख श्रावक यहाँ का आयुष्य पूर्ण कर देवलोक में उत्पन्न होगा और वहाँ से महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होगा।
॥ बारहवें शतक का प्रथम उद्देशक सम्पूर्ण ॥
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