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भगवती सूत्र-श. १२ उ. १ श्रमणोपासक शंख पुष्कली
प्रश्न-हे भगवन् ! तीन प्रकार को जागरिका कहने का क्या कारण है ?
उत्तर-हे गौतम ! जो उत्पन्न हुए केवलज्ञान केवलदर्शन के धारक अरिहंत भगवान् हैं, इत्यादि दूसरे शतक के प्रथम उद्देशक के स्कन्दक प्रकरण के अनुसार सर्वज्ञ और सर्वदर्शी हैं वे 'बुद्ध' हैं, उनको प्रमाद रहित अवस्था को 'बुद्धजागरिका' कहते हैं। जो अनगार ईर्या आदि पांच समिति, तीन गुप्ति यावत् गुप्त ब्रह्मचारी हैं, वे सर्वज्ञ न होने के कारण 'अबुद्ध' कहलाते हैं । उनको जागरणा को 'अबुद्ध जागरिका' कहते हैं।श्रावक, जीव अजीव आदि तत्त्वों के जानकार होते हैं, इसलिए इनकी जागरणा 'सुदर्शनजागरिका' कहलाती है। इसलिए हे गौतम ! इस तरह तीन प्रकार को जागरिका कही गई है।
१२ प्रश्न-तएणं से संखे समणोवासए समणं भगवं महावीर वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-कोहवसट्टे णं भंते ! जीवे किं बंधइ, किं पगरेइ, किं चिणाइ, किं उवचिणाइ ?
१२ उत्तर-संखा ! कोहवसट्टे णं जीवे आउयवजाओ सत्त कम्मपगडीओ सिढिलबंधणबद्धाओ एवं जहा पढमसए असंवुडस्स अणगारस्स जाव अणुपरियट्टइ। . १३-माणवसट्टे णं भंते ! जीवे एवं चेव, एवं मायावसट्टेवि एवं लोभवसट्टेवि जाव अणुपरियट्टइ । - १४-तएणं ते समणोवासगा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयमटुं सोचा णिसम्म भीया तत्था तसिया संसारभउन्वि. ग्गा समणं भगवं महावीरं वंदंति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता जेणेव
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