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________________ भगवती सूत्र-श. १० उ. १ श्रमणोपासव शंव पुष्कली तीसे य धम्मकहा, जाव आणाए आराहए भवइ । तएणं ते समणो. वासगा समणस्स भगवओ महावीरस्म अंतियं धम्मं सोचा णिसम्म हट्ट तुट्टा उडाए उठेति, उ० समणं भगवं महावीरं वंदंति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता जेणेव संखे समणोवामए तेणेव उवागच्छंति ते० संखं समणोवासयं एवं वयासी-'तुमं देवाणुप्पिया ! हिजो अम्हे अप्पणा चेव एवं वयामी, तुम्हे णं देवाणुप्पिया ! विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं जाव विहरिस्सामो, तएणं तुमं पोसहसालाए जाव विहरिए, तं सुटु णं तुमं देवाणुप्पिया ! अम्हे हीलमि । 'अजों त्ति समणे भगवं महावीरे ते समणोवासए एवं वयामी-मा णं अजो ! तुम्भे संखं समणोवासयं हीलह, जिंदह, विमह, गरहह, अवमण्णह, संखे णं ममणोवासए पियधम्मे चेव, दढधम्म चेव, सुदक्खुजागरियं जागरिए।' कठिन शब्दार्थ--हिज्जो-गया कल । भावार्थ-९-रात्रि के पिछले भाग में धर्म जागरणा करते हुए शंख श्रावक को इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ कि कल प्रातःकाल सूर्योदय होने पर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दना नमस्कार यावत् पर्युपासना करके, वहाँ से लौटने पर पाक्षिक पौषध पालना मेरे लिये श्रेयस्कर है । ऐसा विचार कर वह दूसरे दिन प्रातःकाल सूर्योदय होने पर, पौषधशाला से बाहर निकला और बाहर जाने योग्य शुद्ध तथा मंगल रूप वस्त्रों को उत्तम रीति से पहन कर, अपने घर से पैदल चलते हुए श्रावस्ती नगरी के मध्य में होकर भगवान की सेवा में पहुँचा, यावत् भगवान् को पर्युपासना करने लगा। यहां अभिगम नहीं कहना चाहिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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