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भगवती मूत्र-श. १२ ३. : श्रमणोपासक शंख पुष्कली
१९७९
उन्होंने एक दूसरे को बुलाया। शंख श्रावक को नहीं आते देख कर पुष्कली श्रावक शंख को बुलाने के लिए गया । शंख की धर्मपत्नी उत्पला, पुष्कली थावक को आते देख कर हर्पित हुई, तथा सात-आठ कदम मामने जाकर पृष्कली को वन्दना नमस्कार किया और आगमन का कारण पूछा। उत्पला न शंम्ब के पोपध करने की सारी बात कही। पुष्कली धावक पौषधशाला में शंख धावक के पास गया। गव ने कहा-'अशनादि को ग्वाते-पीते हुए पीपध
। मैने विना खाये-पीये ही पापध कर लिया है।'
९-तएणं तस्स संखस्म समणोवासगस्स पुव्वरत्ता-वरत्तकाल. ममयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था-'सेयं खलु मे कल्लं जाव जलंते समणं भगवं महावीर वंदित्ता णमंसित्ता जाव पज्जुवासित्ता तओ पडिणियत्तस्स पक्खियं पोसहं पारित्तए' त्ति कटु एवं संपेहेइ, एवं संपेहेत्ता कल्लं जाव जलंते पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सुद्धप्पावेसाई मंगलाई वत्थाई पवरपरिहिए सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, स० पायविहारचारेणं सावत्थिं णयरिं मझमझेणं जाव पज्जुवासइ, अभिगमो णत्थि।
. १०-तएणं ते समणोवासगा कल्लं पाउ० जाव जलंते व्हाया कयबलिकम्मा जाव सरीरा सएहिं सएहिं गेहेहितो पडिणिक्खमंति, स० एगयओ मिलायंति, एगयओ मिलायित्ता सेसं जहा पढमं जाव पज्जुवासंति । तएणं समणे भगवं महावीरे तेसिं समणोवासगाणं
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