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भगवती सूत्र - १२ उ. १ श्रमणोपासक गं पुष्कली
५- पुष्कली श्रावक को आते हुए देखकर, उत्पला श्राविका हर्षित और सन्तुष्ट हुई । वह अपने आसन से उठ कर सात-आठ चरण सामने गई । उसने पुष्कली श्रावक को वन्दना नमस्कार कर बैठने के लिए आसन दिया और इस प्रकार बोली- "हे देवानुप्रिय ! कहिये, आपके आने का क्या प्रयोजन है ?" पुष्कली श्रावक ने उत्पला से पूछा - "हे देवानुप्रिये ! शंख श्रावक कहाँ है ?" उत्पला श्राविका ने उत्तर दिया- "वे पौषधशाला में, पौषध करके बैठे हुए हैं ।"
६- तरणं से पोक्खली समणोवासए जेणेव पोसहसाला, जेणेव संबे समणोवासए तेणेव उवागच्छड़, ते० गमणागमणाए पडिक्क मह, ग० संखं समणोवासयं वंदइ णमंसड़, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी - ' एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हेहिं से विउले असणे० जाव साइमे उवक्खडाविए, तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! तं विउलं असणं जाव साइमं आसाएमाणा जाव पडिजागरमाणा विहरामो । ७ - तरणं से संखे समणोवासए पोक्खालं समणोवासयं एवं वयासी - णो खलु कप्पर देवाणुप्पिया ! तं विउलं असणं पाणं ग्वाइमं साइमं आमाएमाणस्त्र जाव पडिजागरमाणस्स विहरित्तए, कप्पड़ मे पोसहसा लाए पोसहियस्स जाव विहरित्तए, तं छंदेणं देवाणुपिया ! तुभे तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणा जाव विहरह |
८ - तपणं से पोक्खली समणोवासए संखस्स समणोवा सगस्स
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१९७७
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