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________________ भगवती सूत्र - १२ उ. १ श्रमणोपासक शंस पुष्कली 'भगवान् के पास धर्मोपदेश सुनकर और अवधारण करके हर्षित और सन्तुष्ट हुए । भगवान् को वन्दना नमस्कार कर प्रश्न पूछे। उनके अर्थ को ग्रहण किया । फिर खड़े होकर भगवान् को वन्दना नमस्कार कर, कोष्ठक उद्यान से निकल कर श्रावस्ती नगरी की ओर जाने का विचार किया । 66 २ - तण से संखे समणोवासए ते समणोवासए एवं वयासीतुझे णं देवाणुप्पिया ! विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं वक्खडावेह, तरणं अम्हे तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणा विसाएमाणा परिभाएमाणा परिभ्रंजेमाणा पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणा विहरिस्सामो ।” तरणं ते समणोवासगा संखस्स समणोवासगस्स एयम ं विणएणं पडिसुर्णेति । तरणं तस्स संखस्स समणोवासगस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था - ' णो खलु मे सेयं तं विउलं असणं जाव साइमं आसाएमाणस्स विसाएमाणस्स परिभाएमाणस्स परिभुंजेमाणस्स पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणस्स विहरितए, सेयं खलु मे पोसहसालाए पोसहियस्स बंभयारिस्स उम्मुक्कमणि सुवण्णस्स ववगयमाला-वण्णग- विलेवणस्स णिक्खित्तसत्थ- मुसलस्स एगस्स अविश्यस्स दव्भसंथारोवगयस्स पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणस्स विहरित्तए' त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेत्ता जेणेव सावत्थी णयरी, जेणेव सए गिहे, जेणेव उप्पला समणोवासिया, तेणेव उवागच्छड़, ते० उप्पलं समणोवासियं. आपुच्छह, Jain Education International १९७३ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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