SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 417
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९७२ भगवती सूत्र-श. १२ उ. १ श्रमणोपासक शंख पुष्कली णिग्गया, जाव पज्जुवासइ । तएणं ते समणोवासगा इमीसे कहाए जहा आलभियाए जाव पज्जुवासंति । तएणं समणे भगवं महावीरे तेसिं समणोवासगाणं तीसे य महति० धम्मकहा, जाव परिसा पडिगया। तएणं ते समगोवासगा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोचा णिसम्म हट्टतुटु० समणं भगवं महावीरं वंदंति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता पसिणाई पुच्छंति प० अट्ठाइं परियाइयंति, अ० उट्ठाए उतॄति, उ० समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ कोट्टयाओ चेइयाओ पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता जेणेव सावत्थी णयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए। .. भावार्थ-१-उस काल उस समय में श्रावस्ती नाम की नगरी थी, वर्णन। कोष्ठक नामक उद्यान था, वर्णन । उस श्रावस्ती नगरी में शंख प्रमुख बहुत-से श्रमणोपासक रहते थे। वे आढय यावत् अपरिभूत थे। वे जीव-अजीवादि तत्त्वों के जानकार यावत् विचरते थे। शंख श्रमणोपासक की स्त्री का नाम उत्पला था । वह सुकुमाल हाथ-पाँव वाली यावत् सुरूप और जीव-अजीवादि तत्त्वों की जानने वाली श्रमणोपासिका थी। उस श्रावस्ती नगरी में पुष्कली नाम का एक श्रमणोपासक भी रहता था। वह आढय यावत् अपरिभूत था तथा जीवअजीवादि तत्त्वों का ज्ञाता था। . उस काल उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी, श्रावस्ती पधारे। परिषद वन्दन के लिये गई यावत् पर्युपासना करने लगी। भगवान के आगमन को जानकर वे श्रावक भी, आलभिका नगरी के श्रावकों के समान वन्दनार्थ गये, यावत् पर्युपासना करने लगे। भगवान् ने उस महा परिषद् को और उन श्रमणोपासकों को धर्मोपदेश दिया यावत् परिषद् वापिस चली गई। वे श्रमणोपासक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy